बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

विजय दशमी

 **आप सभी को विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाये**
********************************************
अम्बर-तल में हर्षित पल-पल ,पर्व विजय दशमी का पावन
दुर्गे अम्बे पाप नाशिनी ,,,,,,,,,, करती निर्भय ये जग कानन
मर्यादामय अन्तर वासित ,,,,,,,,कीनी धरा निर्भय सुवासित
वानर सँग कूदे  लंका बिच ,,,,,,,,,,, संहारे  दुष्ट दानव रावण

 *******सुरेशपाल वर्मा 'जसाला' (दिल्ली ) 




सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

सम्मानित मित्रों !! सोचिये

सम्मानित मित्रों !! सोचिये ----
****दादरी (उप्र ) और कर्नाटका की घटना पर, सोची समझी साजिश के तहत साहित्यकार सम्मान लौटाते हैं ,,,
*****आतंकियों की बेरहम घटना पर चुप्पी साध लेते हैं ,,
*****1984 के दंगों के बाद कहाँ थे ये मान्यवर ,, *****मुंबई हत्या कांड के समय कहाँ गायब थे ये लोग ,,,,
*****बाटला हाउस कांड (दिल्ली) के समय क्यों आखे बंद थी ,,,,
*****उप्र सरकार जब दंगा पीड़ितों के साथ भी जाति का खेल खेल रही थी ,एक जाति विशेष को ही मुआवजा दे रही थी तो तब क्यों मानवता दिखाई नहीं दी इन्हें ,,,
*****कोई चुपचाप मांसाहारी पार्टी दे तो कोई फर्क नहीं पड़ता ,लेकिन जब कोई सिरफिरा ऐलान के साथ ऐसी पार्टी देता है तो उसका उद्देश्य शांति भंग करना ही हो सकता ,तब क्यों नहीं बोलते ये लोग ,,,
*****इससे इनकी नियत में खोट नजर आता है ,यही सोचने का प्रश्न है साथियों।


_____यही काम साहित्यकार कर रहे हैं और यही
काम मानवाधिकार कर रहा है,,जातीयता से बाहर निकल कर सबके साथ समान व्यवहार होना चाहिए ,,तभी सबका भला होगा ,,,जयहिंद
*******सुरेशपाल वर्मा 'जसाला' (दिल्ली )

मंगलवार, 29 सितंबर 2015

*****क्रान्तिकारी सरदार भगत सिंह*****
  ( सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक )
देश-धर्म पर मर मिटे ,,,,,,,, ,भारत माँ के लाल ।
लाल-लाल नैना हुए ,,,,, विद्युत पुँज सी ज्वाल । ।
ज्वाल गगन को छू गयी , वो भगत सिंह हुँकार ।
हुँकार दलिया दल गई ,,,,,,,,,,बिगड़ी गौरी चाल । । 

*******सुरेशपाल वर्मा 'जसाला' (दिल्ली )

शनिवार, 19 सितंबर 2015

हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई

***हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई***
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई ,,,भारत माँ के बेटे हैं
भारत माँ ने खुश होकर के ,,,,धर्म सभी समेटे हैं
कह दो उन मक्कारों से ,,जो आतँकी बन घूम रहे
हमने तो युद्धों को जीता,,,,,दुश्मन सदा लपेटे हैं ।
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

सिपाही

*****देश का सिपाही*****


 भारत माँ के वीर सिपाही ,,अंतकाल तक लड़ना जाने
अरि शोणित की नदी बहाते,आसमान में उड़ना जाने
 टेढ़ी नजरों वाली आँखें,,,,,वो गिद्ध सा धरें फोड़ झपट
 लोहा मानें दुनिया सारी,,,,,,,, पराक्रम ही उनका जाने

*******सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

रविवार, 13 सितंबर 2015

मात्राभार गणना / matrabhar ganana

मात्राभार गणना ( विस्तृत )
*********************
मात्रा आधारित छंदमय  रचनायें लिखने के लिए मात्रा या मात्राभार की गणना का ज्ञान होना अति आवश्यक है ,,,,आओ इस ज्ञान- विज्ञान को जाने --
नोट ----१ मात्रा या मात्राभार को  = लघु ,,,,(इसके उच्चारण  में / बोलने में ,कम /अल्प समय लगता है)
२ मात्रा या मात्राभार को = गुरु कहते हैं ,, ,(इसके उच्चारण  में / बोलने में ,अपेक्षाकृत  ज्यादा/अधिक समय लगता है)

**(१)*** हिंदी में ह्रस्व स्वरों (अ, इ, उ, ऋ) की मात्रा १ होती है जिसे हम लघु कहते हैं 
**(२)*** हिंदी में दीर्घ स्वरों (आ, ई, ऊ, ए,ऐ,ओ,औ,अं,  ) की मात्रा लगने पर मात्राभार २ हो जाता है ,, जिसे हम गुरु कहते हैं.
**(३)*** हिंदी में प्रत्येक व्यंजन की मात्रा १ होती है,,,, जो नीचे दर्शाये गए हैं --- -
*** क,ख,ग,घ ,   *** च,छ,ज,झ,ञ ,
*** ट,ठ,ड,ढ,ण ,   *** त,थ,द,ध,न ,
*** प,फ,ब,भ,म ,  ***य,र,ल,व,श,ष,स,ह
जैसे---- अब=११, कल=११,, करतल =११११ ,,पवन १११ ,,मन =११ ,,चमचम=११११ ,,जल =११,,हलचल ११११,,दर  =११,,कसक=१११,,दमकल =११११ ,,छनक =१११ ,दमक =१११ ,उलझन =११११ ,, बड़बड़ =११११,, गमन=१११ , नरक=१११ ,, सड़क=१११

**(४)*** किसी भी व्यंजन में  इ , उ ,ऋ की मात्रा लगाने पर  उसका मात्राभार नहीं बदलता अर्थात १ (लघु) ही रहता  है-
दिन =१ १,निशि=११,,जिस=११, मिल=११, किस =११ , हिल =१११, लिलि =११,नहि =११,,महि =११ कुल=११, खुल=११, मुकुल =१११, मधु =११, मधुरिम =११११ , कृत =११, तृण =११, मृग=११,, पितृ=११,, अमृत=१११,, टुनटुन= ११११ ,, कुमकुम =११११ , तुनक =१११, चुनर =१११ ,ऋषि =११ ,, ऋतु =११,, ऋतिक =१११

**(५)*** किसी भी व्यंजन में दीर्घ स्वर (आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ ,अं,)  की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार (दीर्ध=गुरु )  अर्थात २ हो जाता है.--
हारा=२२ ,,पारा=२२,, करारा =१२२,,चौपाया =२२२ ,,गोला =२२,,शोला=२२,,पाया =२२,,, जाय २१,,, माता =२२,,, पिता=१२,,, सीता= २२,, गई (गयी )=१२,, पीला =२२,,गए (गये )=१२, लाए (लाये) =२२, खाओ =२२, ओम =२१, और =२१,, ओकात =औकात  =२२१,, अंकित २११, संचय =२११,पंपा ==२२,,मूली=२२,,शूली =२२,, पंप (पम्प ) =२१, अंग =२१ ,,ढंग =२१,, संचित =२११,, रंग=२१ ,, अंक=२१ , रंगीन =२२१, कंचन=२११ ,घंटा=२२ , पतंगा=१२२, दंभ (दम्भ )=२१, पंच (पञ्च )=२१, खंड (खण्ड )=२१,सिंह =२ १ ,,,सिंधु =२ १ ,,,बिंदु =२ १ ,,,, पुंज =२ १ ,,, हिंडोला =२ २ २,,कंकड़ =२११,,टंकण =२११ ,,सिंघाड़ा =२२२ ,लिंकन =२११ ,,लंका २२ ,

**(६)*** गुरु वर्ण (दीर्घ) पर अनुस्वार  लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,
 जैसे - नहीं=१२ ,सीँच =२१, भींच=२१ , हैं =२,छींक=२१ ,दें =२, हीँग =२१, हमेँ =१२ , सांप =२१ 

**(८ )***शब्द के प्रारम्भ में संयुक्ताक्षर का मात्राभार १ (लघु) होता है , जैसे - स्वर=११ , ज्वर =११,प्रभा=१२
 श्रम=११ , च्यवन=१११, प्लेट= २१, भ्रम =११, क्रम ११, श्वसन =१११, न्याय =२१,

**(९ )*** संयुक्ताक्षर में ह्रस्व (इ ,उ ,ऋ ) की मात्रा लगने से उसका मात्राभार १ (लघु) ही रहता है ,
 जैसे - प्रिया=१२ , क्रिया=१२ , द्रुम=११ ,च्युत=११, श्रुति=११, क्लिक  =१ १, क्षितिज =१११, त्रिया =१२ , 

**(१० )*** संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,(अर्थात कोई शब्द यदि अर्द्ध वर्ण से शुरू होता है तो अर्द्ध  वर्ण का मात्राभार ० (नगण्य ) हो जाता है )--
 जैसे - भ्राता=२२ , ज्ञान (ग्यान )=२१, श्याम=२१ , स्नेह=२१ ,स्त्री=२ , स्थान=२१ ,श्री=२,

**(११ )*** संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,(अर्थात किसी  शब्द के बीच में अर्द्ध वर्ण आने पर वह पूर्ववर्ती / पहलेवाले  वर्ण के  मात्राभार को दीर्घ/गुरु  कर देता है )---
 जैसे - अक्कड =२११,,बक्कड़=२११,,नम्र =(न म् र) =२१ , विद्या =२२, चक्षु (चक्शु ) =२१,सत्य=२१ , वृक्ष (वृक्श) =२१,यत्र (यत् र )=२१, विख्यात=२२१,पर्ण=(प र् ण ) २१, गर्भ=(गर् भ) २१, कर्म =क (क र् म) २१, मल्ल =२१, दर्पण =२११, अर्चना २१२,, विनम्र (वि न म् र) =१२१,,अध्यक्ष (अध्यक्श)=२२१

**(१२ )*** संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु /  वर्ण के मात्राभार में कोई अन्तर नहीं आता है--
जैसे -प्राप्तांक =२२१ ,,प्राप्त =२१, हास्य=२१ , वाष्प =२१ ,आत्मा=२२ , सौम्या=२२ , शाश्वत=२११ , भास्कर=२११.भास्कराचार्य ,,२१२२१ ,,उपाध्यक्ष (उपाध्यक्श)=१२२१

**(१३ )*** अर्द्ध वर्ण के बाद का अक्षर 'ह' गुरु (दीर्घ मात्रा धारक) होता है तो ,,,अर्द्ध वर्ण भारहीन हो जाता है जैसे ---
*********************************************************
तुम्हें=१२ , तुम्हारा=१२२, तुम्हारी=१२२, तुम्हारे=१२२, जिन्हें=१२, जिन्होंने=१२२, किन्होनें=१२२,,उन्होंने =१२२,,कुम्हार=१२१,, कन्हैया=१२२ ,, मल्हार=१२१  ,,कुल्हा =१२,,कुल्हाड़ी=१२२ ,तन्हा =१२ ,सुन्हेरा =१२२, दुल्हा ==१२,,अल्हेला =१२२ ,

**(1४ )*** किन्तु अर्द्ध वर्ण के बाद का अक्षर 'ह' लघु होने पर मात्राभार वही रहता है जैसे ----
 *************************************************************
 अल्हड़ =२११,,कुल्हड़=२११ ,,चुल्हड़ =२११ ,,दुल्हन =दुल्हिन २११,, कुल्हिया =२१२ , कल्ह २१,,तिन्ह =२१


संकलनकर्ता--
******सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

बुधवार, 2 सितंबर 2015

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **(गौं पालक)**

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **
*****गौं पालक*****
वृक्ष तले जब राजते ,गौं पालक घन श्याम ;
श्याम रूप मन मेे बसा,भजते जो निष्काम ;
काम क्रोध संकट कटें ,प्रमुदित मन संसार ;
सार रूप राधे भजो ,भजो कृष्ण का नाम । ।


*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

शनिवार, 29 अगस्त 2015

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **(झूठे से झूठे )

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **(झूठे से झूठे )
मित्रों ! यह नया प्रयोग करने का प्रयास किया है ,,,,कृपया प्रतिक्रिया अवश्य दें ----
(दोहे के साथ ,,,जिस शब्द से पँक्ति समाप्त होती है ,,उसी शब्द से अगली पंक्ति प्रारम्भ होती है ,,,हर पंक्ति दोहानुसार 13 +11 मात्राभार रखती है )-
*****दोहनुसार  मात्राक्रम प्रति पंक्ति -
4 +4 +2 +3 (1 2 ),,,,,,4 +4+3 (2 1)
या
3+3+4+3 (1 2),,,,,,,3+3+2+3 (2 1 )
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

झूठे से झूठे हुए ,,,,,,,,,,राजनीति  के लोग ;
लोग भोग में व्यप्त हैं ,अनाचार  का रोग ।
रोग पापमय  फल रहे ,,,,,,खाते अरबों माल ;
माल हमारे टैक्स का ,,,,,नंबर दो में भोग ।।

*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)



शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

* माहिया *( मात्रिक छंद )

  ***माहिया ***( मात्रिक छंद )

 पंजाब का प्रसिद्ध लोग गीत है,,,वैसे तो इसमें श्रृंगार रस के दोनों पक्षों (संयोग और वियोग ) का समावेश होता है ,,,,लेकिन अब 

बढ़ते समय के साथ अन्य रस भी इसमें शामिल किये जाने लगे हैं,,, इस छंद में नायक और नायिका  की  नोंक-झोंक भी होती 

है,,,यह तीन पंक्तियों का छंद है  इसे  ''''टप्पा'''  भी कहते हैं 

  इसमें पहली और तीसरी पंक्तितों में 12 मात्राएँ अर्थात 2211222 / 222222 ,,,,,,दूसरी पंक्ति में 10 मात्राएँ अर्थात 211222 / 22222 होती हैं,,,

नीचे कुछ माहियों को देखिए--

[१]

हम प्रेम निभाते हैं 

सबको अपनाकर 

हम धोका खाते हैं 

[२]

तू सबका पालक है 

हर इक प्राणी को 

नव जीवन देता है 

[३]

जीवन विश्वास भरा 

बंधन राखी का 

रिश्ता अनुराग भरा 

[४]

उससे फरियाद करो 

संकट सकल कटें 

जब प्रभु को याद करो

*****सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

रक्षा बंधन पर सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक

**रक्षा बंधन पर सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **
*********************************
राखी तो है प्यार का ,,,अद्भुत सा विश्वास ;
वास-सुवासित प्रेम से ,रिश्तों में मधुमास ।
मास प्यार के बंध का ,,,,करे प्रेम बरसात ;
सात समन्दर पार भी ,भाई-मन में आस ।।

*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

रविवार, 23 अगस्त 2015

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **
मित्रों ! यह नया प्रयोग करने का प्रयास किया है,,,,कृपया प्रतिक्रिया अवश्य दें ----
(दोहे के साथ ,,,जिस शब्द से पँक्ति समाप्त होती है ,,उसी शब्द से अगली पंक्ति प्रारम्भ होती है ,,,हर पंक्ति १३+११ मात्राभार रखती है )मुक्तक में तीसरी पंक्ति का तुकांत भिन्न होता है.
*****दोहा मात्राक्रम प्रति पंक्ति -
4 +4 +2 +3 (1 2 ),,,,,,4 +4+3 (2 1)
या
3+3+4+3 (1 2),,,,,,,3+3+2+3 (2 1 )
********************************
 ***तुलसी जी की जयंती पर विशेष***

[१]
तुलसी जी के कारने ,,,,,,,राम नाम की लूट ;
लूट सको तो लूट लो ,,,मोह-बँधन की छूट ।
छूट-छुटाये हरि मिलै ,मिलै स्वर्ग का धाम ;
धाम-नर्क से मुक्त हों ,पीकर हरि का घूँट ।।
[२]
मैं तुलसी का बावरा ,,,,,,,,,अद्भुत उसका काम ;
काम सभी को भा रहा ,,,,,,, भजते सब श्रीराम।
राम सलोने सार हैं ,,,,,,,,रामायण सियकन्त ;
सियकन्त कृपा सुभग अति,काटे फंद तमाम ।।

 *****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **(नया प्रयोग)

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **
मित्रों ! यह नया प्रयोग करने का प्रयास किया है,,,,कृपया प्रतिक्रिया अवश्य दें ----
(दोहे के साथ ,,,जिस शब्द से पँक्ति समाप्त होती है ,,उसी शब्द से अगली पंक्ति प्रारम्भ होती है ,,,हर पंक्ति १३+११ मात्राभार रखती है )मुक्तक में तीसरी पंक्ति का तुकांत भिन्न होता है.
*****दोहा मात्राक्रम प्रति पंक्ति -
4 +4 +2 +3 (1 2 ),,,,,,4 +4+3 (2 1)
या
3+3+4+3 (1 2),,,,,,,3+3+2+3 (2 1 )
*********************************
[1]
माँ शारदे नमन तुम्हे, नमन अनेकों बार ;
बार-बार वंदन करूँ ,, शीश तुम्हारे द्वार ।
द्वार सजे हैं भाव से ,नेह-सुमन की माल ;
माल खजाने शब्द से,,करो ज्ञान विस्तार।

********************************
[2]
मन गंगा का राज है ,दिल में है हरि- द्वार ;
द्वार हर्ष के खुल रहे ,,,,,ये जीवन का सार ।
सार रूप में यूँ कहें,,,,,,,,,,ईश्वर सबके साथ ;
साथ सभी के साथ से,,,,हो जीवन विस्तार।


*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)
------------------[15 अगस्त 2015 ]

बुधवार, 12 अगस्त 2015

मुक्तक / muktak (कोई संसद को मंदिर कहता )

मुक्तक /  muktak
कोई संसद को मंदिर कहता,,,,,,,,, कोई अखाड़ा बना रहा,
कोई चर्चा जनता की करता,,,,,,,,,,, कोई नगाडा बजा रहा,
संसद मे असंसदीय चरित्र का,खुल्लम खुल्ला होता नृतन,
क्यूँ जनता हित को धर ताक पे, ये विपक्ष शोर मचा रहा !
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)


बुधवार, 29 जुलाई 2015

मुक्तक (muktak)

******मुक्तक ******
( हर आतंकी को फांसी दो ,,फांसी का विरोध करे जो,,उसको भी फांसी दो )















आतंकी की फांसी पर भी ,राजनीति गरमाती है ;
हमदर्दी रखने वालों को ,शरम क्यों नहीं आती है ;
भारत माँ पर कट्टर दुश्मन ,करते हैं आघात सदा ;
चुन-चुन मारो गद्दारों को,फांसी राह दिखाती है।


*****सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

रविवार, 26 जुलाई 2015

मुक्तक / muktak

मुक्तक / muktak
******नये हालात पर एक नया मुक्तक *******
आतंकी को गले लगाते और करते उनका समर्थन भी !
खंड खंड तन उनका कर दो, काटो उन दुष्टों की गर्दन भी !!
देश द्रोह अपराध बडा है, उनको नही कभी माँफी देना !
हतोत्साहित हो आतंकी सब, हो दुष्ट के गर्व का मर्दन भी !!
******सुरेशपाल वर्मा जसाला ( दिल्ली )



गुरुवार, 23 जुलाई 2015

मुक्तक (muktak) : बाधाओं पर जय जो पाते

**मुक्तक (muktak)) : बाधाओं पर जय जो पाते**
बाधाओं पर जय जो पाते ,वो ही हिम्मत वाले होते
शूलों पर भी नाचें गावें ,साहस के  रखवाले होते
झंझावातों से लड़ जाते ,तूफां  से भी लेते टक्कर
प्रकट सदा वे काल रूप में ,शिखर चूमने वाले होते
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)


बुधवार, 22 जुलाई 2015

वर्ण पिरामिड / varn piramid (जसाला पिरामिड / jasala piramid )

((((((****यह मेरी नवविधा है - ''वर्ण पिरामिड''****))))) 
********************************************
[इसमे प्रथम पंक्ति में -एक ; द्वितीय में -दो ; तृतीया में- तीन ; चतुर्थ में -चार; पंचम में -पांच; षष्ठम में- छः; और सप्तम में -सात वर्ण है,,, इसमें केवल पूर्ण वर्ण गिने जाते हैं ,,,,मात्राएँ या अर्द्ध -वर्ण नहीं गिने जाते ,,,यह केवल सात पंक्तियों की ही रचना है इसीलिए सूक्ष्म में अधिकतम कहना होता है ,,किन्ही दो पंक्तियों में तुकांत मिल जाये तो रचना में सौंदर्य आ जाता है ] जैसे-
ये
वर्षा
कनक-
झरें बूंदें,
उड़े विहग ,
तरुवर सूने ,
आनंद कंद फूले । [१]
थे
वट
पीपल ,
आम,नीम,
कुँए के पास ,
झूलों की मस्ती में -
खिले मन उदास।  [२]


हे
प्रभु
शंकर !
बेल-पत्र -
करूँ अर्पण ,
हो व्याधि निदान ,
कष्टों का समाधान । [३]

तू
मेरा,
में तेरा,
जीव-जीव
कण -कण का
तू ही आधार है ,
प्रभु  निर्विकार है। [४]
 ********सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

गीतिका : (तोता बैठा है मंदिर पर)



विधा-गीतिका
मात्राभार -16 +16 प्रति पंक्ति ,,,मापनी मुक्त 
केवल पदांत =ऐना
तोता बैठा है मंदिर पर ,,,,,,,,,,,,,,,मस्जिद पर बैठी है मैना ,
दूर-दूर बैठे  है दोनों  ,,,,,,,,,,,,,,,,पर डोर प्रेम की दिन -रैना ।
नाचे मोर चर्च के ऊपर ,,,,,,,,,,,कोकिल कूके गुरु-द्वारे पर ,
जब तक आँखे चार न कर लें ,कभी न मिलती उनको चैना ।
 मंदिर तोता उड़ मस्जिद पे ,,,,,,मस्जिद की मैना मंदिर पे ,
उड़ते दोनों सँग -सँग देखो ,,,,,,,,,,,,भेदभाव कोई मन है ना ।
कभी मोर गुरु-द्वारे जाता,,,,,,,,,अरु कोयल जाती चर्चों पर ,
कूक -कूक मस्ती में गावें ,,,,,,,,,,मोहक उनके मिसरी बैना ।
भेदभाव क्यूँ हमने धारा ,,,,,,क्यूँ नफ़रत पाली मन-मन में ,
धो डालें आओ दाग सभी ,,,,,,,,,,ये  रगड़ प्रीत-साबुन फैना ।










कहे जसाला स्वयं को बदले ,,,,बदल जायेगी सारी  दुनिया ,
स्वार्थ की जंजीरें तोड़ें ,,,,,,,,,,,,,,,,,,चमक उठेंगे सबके नैना ।
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

विधा -गीत ( मंदिर मस्जिद गुरु-द्वारे )

विधा -गीत ( मंदिर मस्जिद गुरु-द्वारे )
मात्राभार प्रति पंक्ति =16 +16


मंदिर मस्जिद गुरु-द्वारे की,
अन्तर-व्यथा को  कहूँ  कैसे ?
नीर  भरे  उनके   नैनों   की ,
पीड़ा  को  बयाँ  करूँ  कैसे ?


मंदिर ने मस्जिद से  पूछा ,
री ! हाल बता क्या है तेरा ?
मस्जिद बोली आतँक गहरा,
निर्दोषी  रक्त  सहूँ  कैसे ?

मस्जिद भी पूछे मंदिर से,
तू भी तो हाल बता अपना ;
मंदिर बोला  लड़ते  सारे ,
मैं  चिन्ताहीन रहूँ  कैसे ?

गुरु-द्वारे ने  मौका  देखा ,
चर्च से पूछा  उसका हाल ;
भीषण  बम्ब बनाते  सारे,
दुखी मन, विनाश वरूँ कैसे ?

चर्च का प्रश्न गुरु-द्वारे से ,
अब कैसे कटते दिन तेरे  ?
उत्तर आया ईर्ष्या में सब ,
आँसू  अपने  रोकूँ   कैसे ?

आँखें  उनकी  भरी-भरी थी ,
था दिल भी उनका भरा-भरा ;
सपना ही था  पर अच्छा था ,
उसको  मैं  अब  भूलूँ  कैसे ?

हृदयहीन तो चिन्तित देखे,
पर हृदयवान हैं  सब  जीरो ;
मानव मानवता छोड़ चला ,
उसको मानव कह दूँ   कैसे ?

*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)




गुरुवार, 25 जून 2015

***गीतिका *** मृगछौनों की मुस्कानों में


***गीतिका ***
मृगछौनों की मुस्कानों में , ''''''''''''''आनंद नहीं जिसने पाया ।
अनुगामी वो पशुता का है , '''''''''उसकी मिथ्या मानुष काया ।।

इठलाते मन भावों को जब , '''''''''''''''कर देते हैं अनदेखा हम ।
समझो हमनें कलशामृत को ,'''''''''''''''' है अंजाने में ठुकराया ।।

दन्तों की चमचम तडित-जडित , ढलती है जब मुस्कानों में ।
तब स्वर्ग अवतरित धरती पर ,''''' मन देवों का भी भरमाया ।।

कर पाया भान  न दृढ़ता का , '''पाहन का अवलोकन कर भी ।
है उसका ज्ञान अधूरा ही , ''''''''''''''उसने मन यों ही भटकाया ।।

देख जगत के प्रेमिल रँग को,'''''''''''''''' बैठ रहा जो आँखे मूंदे ।
अन्तर्मन शून्य बना उसका ,''''''''उसने जीवन व्यर्थ गँवाया ।।

चोटी पर बैठ कहे कागा , ''''''''''''''''''''''''जीता है मैंने चोटी को ।
 कहत 'जसाला' यह अर्द्ध सत्य, ''पूरा सच समझ नहीं आया ।।

*****************सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

सोमवार, 22 जून 2015

गाँव : कहाँ गए वो गाँव

कहाँ गए वो गाँव -
पीपल पर झूले ,बरगद की छाँव
कबूतर की घुटुरघूं , मेंढक की टाँव 
चिड़िया की चहक ,कौए की कांव
न जाने  कहाँ गए वो गाँव ?

मुर्गे की बांग, सरसों का साग
सर्दी की ठिठुरन ,लकड़ी की आग
मस्ती का मल्हार, होली का फ़ाग
बैठक का हुक्का ,और आल्हा का राग
न जाने  कहाँ गए वो गाँव ?

गाँव की गौरी ,छमछम और घूँघट
दुल्हिन नवेली ,गगरी और पनघट  
शादी के गीत, मीठे और चटपट
 बालाओं की बात ,सुरीली और नटखट
 न जाने  कहाँ गए वो गाँव ?

गाय के बछड़े ,बैलों की कंठी
कट-कट रहट ,किसानों के शंटी
आम की खुशबू ,बेरों की कंटी
पंडित की पूजा ,मंदिर की घंटी
न जाने  कहाँ गए वो गाँव ?

कोयल की कूक ,मुर्गी का अंडा
कबड्डी का खेल , गुल्ली का डंडा
छाछ की मटकी ,खांड का ठंडा
घरोंदे का रेत , बचपन का फंडा
न जाने  कहाँ गए वो गाँव ?
***** सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

शनिवार, 20 जून 2015

गीतिका / हिंदी ग़ज़ल (मोहिनी बाजे अधर पर बांसुरी )

विधा =गीतिका  / हिंदी ग़ज़ल 
समान्त =अर  / पदांत =बाँसुरी
मापनी =2122 ,2122, 212

मोहिनी बाजे अधर पर बांसुरी।
कौन है जो ना धरे कर बांसुरी।।
मीत ज्यों ही साँस पूरी कर चला ।
गीत विरही गा उठी जर बांसुरी ।।
खून से जब सड़क रक्तिम सी लगे ।
फड़ फडाकर फड़कती हर बांसुरी ।।
देख आतँक हाल,हिय क्रन्दित बहुत ।
रो उठी चीत्कार सुनकर बांसुरी ।।
भू-गगन को गह रही हैं बेटियां ।
ताल देके खुश हुई नर बांसुरी ।।
बिलबिलाता देख शिशु को रो दिया ।
कह उठाकर हस्त श्रम कर बांसुरी ।।
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

*****बांसुरी =बंशी / हृदय (प्रतीकात्मक ) ,,जर=वृद्ध ,, हर =प्रत्येक ,,
गह=गहराई तक पता लगाना / खोजना,, नर बांसुरी =पुरुष हृदय

गीतिका / हिंदी ग़ज़ल : (मानवता की खातिर जो)



विधा=गीतिका / हिंदी ग़ज़ल
मात्राभार =14 + 12 ( 2222222 + 222222 )
समान्त =उक  ,,  पदांत=पाया

मानवता की खातिर जो , तनिक नहीं झुक पाया
प्यार खजाने से उसका , अंतस्थल खुक पाया

रंकाई का मालिक वो , काम सभी के आये
टुकड़ा मुँह का भी देता ,  हाथ नहीं रुक पाया

जीवन तोता मैना  सा ,चर्चा अधर-अधर पर
जब सँग मैना  का छूटा ,क्रंदित वो शुक पाया

झंझावातों से लड़ता , करता श्रम स्वेदनमय
दिनकर  की ज्वाला में भी ,मन वचन न फुक पाया

भंडार बहु  भरे धन के , बैठा लालच मन में
अंत तक नहीं समझ सका, धन का भिक्षुक पाया

बिजुरी कड़की कुछ ऐसी ,लड़ जीवन की बिखरी
देख जसाला अँधियारा ,जन- मन धुक-धुक पाया

*****सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]




बुधवार, 10 जून 2015

*****राजखेल *****

*****राजखेल *****
राजखेल में महाधुरन्धर
मानवता का पद्दलन करते
रक्त पिपासु काक श्रृगाल
बोटी नोंच भक्षण करते

धूर्त शकुनी  चलकर चालें
धर्मराज का अपहरण करते
स्याह-भ्रष्ट कर्मों के संगी
देश धन को हड़प करते

वस्त्र विहीन कर अस्मिता को
नग्नता का परचम फरते
आतंक के संग मेल मिला
नर-पिशाच हैं वे बनते

राजनीति के भ्रष्ट- धुरंधर
देश-धर्म गिरवी रखते
भारत माँ की सौगातों का  
वोटों बीच दलन करते
**** सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)



एक अनूठा उपन्यास ''खट्टे मीठे रिश्ते''

***एक अनूठा उपन्यास ''खट्टे मीठे रिश्ते'' ***
मित्रों ! कनाडा से प्रकाशित होने वाला एक अनूठा
उपन्यास ''खट्टे मीठे रिश्ते'' ,जिसके लेखक 100 से
 भी अधिक हैं ,,,उनमें से मैं  भी एक हूँ ,,मैं भी अपने
 हिस्से का लेखन का काम पूर्ण कर चुका हूँ ,,मैं स्वयं
में उसका हिस्सा होने से बहुत प्रसन्न हूँ ,,,ये सब
आप मित्रों के स्नेह का प्रतिफल है.
इस सम्पूर्ण कार्य को अंजाम दे रहे हैं ,,जाने-माने
कनाडा वासी साहित्यकार आदरणीय प्रो सरन घई जी ,,,
इस  अनूठे  कार्य के लिए उनका हार्दिक अभिनंदन

*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

सोमवार, 8 जून 2015

* गीत * (आ जा रे मधुकर तू आ जा )

***** गीत *****
आ जा रे  मधुकर तू आ जा
अपना गुन-गुन राग सुना जा  ;

युवती सी सरसों झूम रही
वो मोहक आभा पूर रही ;
अंगों  की कलियाँ उभर-उभर  
हैं पीत स्वर्ण सी घूर रही;
तितली को सँग ले के आ जा
आकर उसका दिल बहला जा  ;
आ जा रे  मधुकर ........... 

नन्हीं-नन्हीं कलियाँ  लुटिया
सब अधर-अधर तक पूर हुई ;
मन पवन उन्हें खूब नचाये
मस्ती से  सारी चूर हुई ;
छलक न जाये मधुरस उनका
प्रेमिल प्याला ले के आ जा ;
आ जा रे  मधुकर  ............
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

सोमवार, 1 जून 2015

सुरेशपाल वर्मा जसाला sureshpal verma jasala

मेरा संक्षिप्त  परिचय
नाम-सुरेशपाल वर्मा जसाला [ सोनी जी ]
पिता -स्व. श्री सियानन्द वर्मा ,,,स्व. माता -श्रीमती मूर्तिदेवी
दादा-स्व. श्री रामचन्द्र वर्मा ,,,दादी-स्व. श्रीमती  चन्द्रोदेवी
ग्राम -जसाला / दिसाला [ जिला-शामली ]
एम ए ,बी एड़
[१] ****** मैं अपने बारे में बताना चाहूंगा कि मैं पेशे से सरकारी विद्यालय में अध्यापक हूँ। मेरी आयु 56 वर्ष [जन्म तिथि 25 दिसम्बर 1958 ] ,,दिल्ली सरकार के सीनियर सेकेंड्री विद्यालय में सेवाकाल 27  वर्ष ,,
[2 ],दो बार सर्वोत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त [दिल्ली नगर निगम से ]

[3  ]******अब तक प्रकाशित विभिन्न पुस्तकें  8 ,,,
मेरी प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार से हैं-(१)मैं भी कुछ कहता हूँ [काव्य]  (२)बालमन और सिंहासन [बाल- काव्य](३)महाशिला का कण [काव्य]  (४)जीवन के रंग [संस्मरण ] (५)मैर क्षत्रिय स्वर्णकार और उनका इतिहास (६)भारत माँ को नमन[काव्य] (७)थू [लेख संग्रह-इसमें  मोदी जी का लिखित  शुभकामना संदेश भी  है ]
 (८ )उत्कृष्ट व्यक्तित्व नरेन्द्र मोदी [जीवन -परिचय ]
[4  ]*******''अनमोल सिक्के'' अर्ध वार्षिक पत्रिका का सम्पादन कर्ता  भी मैं ही हूँ

[5  ]*******सम्मान --
साहित्य सौरव [2009 ], काव्य-रत्न [2010 ], गुरुदेव बृह्पति सम्मान [2011 ], पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पुरस्कार [2011 ] ,स्व. रामबाबू स्मृति अवार्ड [2012 ] , साहित्य भूषण [2012 ], विश्व कवि सांसद,लखनऊ ,उत्तर प्रदेश [2012 ] , डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन सम्मान [2012 ] , संस्कार भारती  सम्मान,डिबाई ,उत्तर-प्रदेश [2013 ] , उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान  [2014 ],नमो साहित्य सम्मान [2014 ],आर्य वीर [2014 ] , देवी अहिल्याबाई होल्कर सम्मान [2014 ], साहित्य गौरव- दिल्ली  [2014], साहित्य- गौरव ,सिवनी, मध्य-प्रदेश [2015 ],कवितालोक रत्न सम्मान ,हिसार ,हरियाणा[ 2015 ], साहित्यिक सम्मान ,सहारनपुर ,उत्तर प्रदेश [2015 ]
,
[6  ]*******''काव्य में '''''नव विधा '''''वर्ण पिरामिड'''' को मैंने ही शुरू किया।
[7  ]*******सुप्रभात मंच [पंजी ][सामाजिक संस्था]का संथापक अध्यक्ष हूँ।
[8  ]*******स्वर्णकार धर्मशाला ,शाहदरा का ट्रस्टी हूँ।
[9  ]*******संरक्षक -न्यू  मॉडर्न शाहदरा वेलफेयर एसोसिएशन [पंजी  ]
[10  ]*******सहित्यिक फेसबुक ग्रुप ''काव्य अनुगूंज ''
********************************************सुरेशपाल वर्मा जसाला
1/4332  श्रीराम भवन ,,रामनगर विस्तार ,,शाहदरा दिल्ली  110032
मोब. 098680 53535

शुक्रवार, 22 मई 2015

मेरी अर्द्ध -वार्षिक पत्रिका ''अनमोल सिक्के ''

मित्रों ! मेरी अर्द्ध -वार्षिक पत्रिका
 ''अनमोल सिक्के ''
का प्रथम अंक
जनवरी से जून  2015

मेरी पुस्तक ( प्रथम / द्वितीय )

 मेरी  प्रथम पुस्तक 
   ''मैं भी कुछ कहता हूँ ''         
            (काव्य-संग्रह )
    
मेरी द्वितीय   पुस्तक
      ''बाल मन और सिंहासन ''
                 (बाल काव्य-संग्रह )

मेरी पुस्तक (तृतीय / चतुर्थ )

मेरी तृतीय पुस्तक
        ''जीवन के रंग   ''
               (संस्मरण-संग्रह )

मेरी चतुर्थ  पुस्तक
      ''महाशिला का कण ''
                 (काव्य-संग्रह )

गुरुवार, 21 मई 2015

***हमने उसमें नाज़ सा देखा***


हमने उसमें नाज़ सा देखा;
दम्भीपन का राज सा देखा ।

चुनरी उड़ती देख रंगीली ;
उसको उड़ता बाज़ सा देखा ।

वो बेढंगा बेसलीका है  ;
तो भी लिपटा  लाज़ सा देखा ।

रहता कोसों दूर बेचारा ;
सम्बन्ध बटन काज सा देखा ।

सीधा -सादा ना अहंकारी ;
पर वो सर का ताज सा देखा ।

गुरबत में भी हार ना मानें  ;
नासाजी में साज़ सा देखा ।

पंथ जसाला लेय सुन्हेरा ;
बेमानी पे  गाज़ सा देखा ।
****सुरेशपाल  वर्मा जसाला [दिल्ली]

सोमवार, 18 मई 2015

गाँव (*गाँव पर एक कुंडली *)

*****गाँव पर एक कुंडली *****
काना-बतिया  कर रहे ,,वृक्ष सभी इक साथ ;
क्रन्दित शाखा झुक रही ,,,,पकड़ै मेरे हाथ ।
पकड़ै मेरे हाथ ,,,,,,,,,,,,पात भी राग सुनावै ;
डगर- खेत-खलिहान,,,सभी मस्ती में गावैं ।
पक्षी कलरव होय,,,,, मधुर आनंदित गाना ;
आवे बचपन याद,,,,,,,,उडे जो कौआ काना ।


*************सुरेशपाल वर्मा जसाला

शुक्रवार, 15 मई 2015

सुभाषचन्द्र बॉस पर एक मुक्तक












***** सुभाषचन्द्र बॉस पर एक मुक्तक*****
सुभाष चंद्र सा वीर लाडला ,,,,,,,,अंग्रेजी शासन गहने लगा ;
''खून के बदले लो आजादी '',,,,  मंत्र ये सभी से कहने लगा ;
ठोक दी कीलें उस चरखी में ,,,,,,जो अंगरेजों की चलती थी ;
वो सिंह-गर्जना कर दी ऐसी,शासक भी कम्पित रहने लगा ।
******सुरेशपाल वर्मा जसाला [शाहदरा-दिल्ली]


*** रे मानव ***

*** रे मानव ***
***************
रे मानव !
क्यूँ अंगारों से खेल रहा
अणु- परमाणु के चक्रव्यूह में -
जीवन अपना ठेल रहा ,
क्रंदन -खण्डन के गीतों में -
होती वंदन महक कहाँ ?
अस्त्र -शस्त्र की कोप- गाह में -
परमानन्दी चहक कहाँ ?
है अभिलाषा कुत्सित तेरी -
तू स्वार्थ बोध में अटक रहा ,
विनाश शिखर पर बैठा-बैठा -
हाथ पैर को पटक रहा ,
भूल गया तू यहाँ सभी को -
ये सब तेरे हैं अपने ,
जहाँ भी शस्त्र चलेगा तेरा -
टूटेंगे अपनों के सपने ।

टूट गए यदि रिश्ते सारे -
होगा तू भी चकनाचूर यहाँ ,
चाहता है जो बना रहे -
अस्तित्व तेरा इस जहाँ ,
अस्त्र -शस्त्र की होड़ छोड़ -
प्रणय का पैगाम फैला ,
प्रचंड- प्रलय की ज्वाला से -
मधुर- सुगन्धि पवन चला ,
अहिंसावादी ब्रह्मास्त्र से-
कर दे छिन्न पापों का मस्तक ,
निश्छल भाव जगत में धर दे -
प्रणयी रश्मि की दस्तक ।
व्यर्थ अर्थ जो कर रहा तू -
शस्त्रों की निर्माण शक्ल में-
मन तेरा फंसा हुआ है -
भाव शून्य मकड़ जाल में ,
बन्धनमुक्त कर झंकृत कर दे -
व्यापकता की मधुर तान से ,
''वसुधैव कुटुम्ब ''हो नारा तेरा -
मैं भी तेरे साथ चलूँ ,
तेरे नव- उद्घोष की खातिर -
जन-मन में उद्गार भरूं ,
त्याग विनाश की प्रकृति को -
सृजन को तू गले लगा ,
धता बता दे भेदभाव को -
नई सोच, नई उमंग जगा ।
----------सुरेशपाल वर्मा ''जसाला '' [दिल्ली ]

बुधवार, 13 मई 2015

*वीर जवानों की गाथायें *












*******वीर जवानों की गाथायें *******[भाग- 1 ]
वीर जवानों की गाथायें,तुमको आज सुनाता हूँ ;
तूफानों में डटे रहे जो ,उनको शीश झुकता हूँ ;
कर्मपथ के वे अनुरागी ,मैं  तो उनका दास हूँ ;
उनकी ही आजादी में ,लेता खुलकर साँस हूँ ;
भारत माँ के प्रणय हेतु ,करता ये अहसास हूँ ;
गाकर गाथा उन वीरों की ,मन से मैं मुस्काता हूँ ;
वीर जवानों की गाथायें--------------------------
चढ़ चेतक पर राणा प्रताप ,हर-हर बम-बम बोले थे ;
काँप उठा था शत्रु सारा ,वीर शिवा जब डोले थे ;
मंगल पांडे की चिंगारी ,रंग आजादी लाई थी ;
लक्ष्मीबाई भी बन काली ,अंग्रेजों पर छाई थी ;
राजगुरु सुखदेव भगत ने, फांसी गले लगाई थी ;
शेखर की पिस्तौल के आगे, नतमस्तक हो जाता हूँ;
वीर जवानों की गाथायें--------------------------




गोविंदसिंह का बाज उडा था ,फुर-फुर-फुर-फुर नभ में ;
ऊधमसिंह भी कूद पड़ा था , आजादी की जंग में ;
तात्यां ने भी मरघट भेजा ,अंग्रेजों को रण में ;
पंजाब केसरी की केसर की,मधुर सुगन्धी फैली थी ;
लोह पुरुष की आँखें भी ,अंगारो सी दहकी थी ;
दुश्मन का सीना चीर धरे जो,उनकी गाथा कहता हूँ ;
वीर जवानों की गाथायें--------------------------

नेताजी के सम्भाषण की,एक अनोखी मौज थी ;
वीर बांकुरों से अलंकृत, आजाद हिन्द फ़ौज थी ;
आजादी के मतवालों की ,बढ़ती हिम्मत रोज थी ;
रणभूमि में  गर्जन करता, ऐसा सिंह एक था ;
भारत माँ की आजादी का उसका सपना नेक था ;
खून के बदले आजादी की ,पहेली एक बुझाता हूँ ;
वीर जवानों की गाथायें-------------------------
*******सुरेशपाल वर्मा 'जसाला '

सम्मान ( ''' कवितालोक रत्न सम्मान''' )


हिसार (हरियाणा) साक्षी रहा ,,वहां की हवा ,खुशबू साक्षी रही ,,वहां का कण-कण साक्षी रहा ,,''एक अनूठे इतिहास का ''
जहां एक अद्वित्य पुस्तक ''कवितालोक '' [जिसमें श्रेष्ठ रचनाकारों की ,,,शिल्प विधान सहित 82 श्रेष्ठतम  रचनाओं को  शामिल किया गया है ] के लोकार्पण के पावन अवसर पर ,,,, कवि श्रेष्ठों को  सम्मान देकर वहां के संजीदा, मृदुल- हृदया जन-गण ने   ऐतिहासिक पलों  को सदा-सदा के लिए अपने नाम कर लिया ,,,
 चित्र ;;;;;दिनाँक 26 अप्रैल 2015 ;;;;,,
****************************************************
संपादक : ओम नीरव जी [जिनको काव्य-शिरोमणि सम्मान से अलंकृत किया गया]
प्रबंध संपादक : मनोज मानव जी [जिन्हे कवितालोक रत्न सम्मान से अलंकृत किया गया]
******************************************************************************

******{{{{मुझे भी इस ऐतिहासिक भूमि पर ''' कवितालोक रत्न सम्मान''' के साथ-साथ वीर-रस का  काव्य-पाठ  करने का सुअवसर मिला ,,,और उनके द्वारा मुझ पर उड़ेले गए अथाह स्नेह के लिए,, हिसार की धरा और वहां की सुधि जनता का हृदय की गहराइयों से अभिनंदन एवं वंदन करता हूँ,,,आभार सभी का । }}}}
*******************************************************************************
@@@@@,,हम सब की ओर से निम्न  सभी सफल  आयोजन कर्ताओं का हृदयस्पन्दित आभार एवं इन्हें अंतस से अभिनन्दन -पुष्प समर्पित -----
***श्री गुमनाम कवि जी [एडमिन कवितालोक]
***श्री तिलक जैन जी [संयोजक ;;सम्मान समारोह एवं अखिल भारतीय कवि सम्मेलन ,,हिसार]
***डा. शमीम शर्मा जी [मंच  संचालिका ]
***डा. चंद्रशेखर जी [मंच सह संचालक]

माँ पर एक मुक्तक

*माँ पर एक मुक्तक ******** 
माँ के आँचल में होता है ,,,,हम सबका सम्मान सखी ;
माँ की ममता ढाल बने औ,,, करती है कल्याण सखी ;
स्वर्ग-धरा का कर सकते हैं ,केवल हम अनुमान मगर ;
माँ के चरणों में तो होता  ,,,,,,,, परमानंदी  मान सखी.
****सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

सोमवार, 11 मई 2015

*चार - दोहे *

******चार - दोहे ******
[1 ]
चिन्ता  -दीमक कर रही ,थोथी सबकी देह ;
विपत्ति के इस हाल में ,किसका किससे नेह।
[2 ]
 मैं तो प्यारा हूँ नहीं ,प्यारे मेरे बोल ;
कर्कश नारियल उर में ,होवे मीठा घोल ।
[3 ]
ज़र जोरू और ज़मीन,हैं झगड़े के मूल ;
रहे नाथ के पास जो ,उगै कभी न शूल।
[4]
धरम -करम के  सार को ,रहे कृष्ण जी सींच;
राजनीति के व्याल को ,रक्खा गर्दन भींच।


********सुरेशपाल वर्मा जसाला



*पेश है एक नया दोहा ,,,नए अंदाज में *


*****पेश है एक नया दोहा ,,,नए अंदाज में *****
नग- नग, नग -नग, नग मिलें ,नग -नग, नग -नर- नार ;
नग- नग, नग सा नाज है ,,,,,,,,,;नग -नग ,नग सरकार  । 
*********सुरेशपाल वर्मा जसाला (२० मार्च २०१५)
शब्दार्थ--
नग =पहाड़, वृक्ष, सर्प, सूर्य, रत्न ,सुन्दर
नाज =नखरा ,अन्न

(यमक ,श्लेष ,अनुप्रास का एक प्यारा सा अंदाज )
अर्थ ====
(१ ) नग- नग, नग -नग, नग मिलें==
पर्वत-पर्वत ,वृक्षों -वृक्षों के ऊपर सर्प /सूर्य के दर्शन होते हैं
 या ,,, सुन्दर रत्न भी मिलते हैं
(२ ) नग -नग, नग -नर- नार===
 पर्वत-पर्वत पर वृक्ष/सूर्य /सर्प ,पुरुष व् नारी दिखाई पड़ते हैं
(३ )नग- नग, नग सा नाज है===
  पर्वत-पर्वत तना खड़ा है और उसमें उत्तमता का नखरा /गर्व है ,,,या
पर्वत-पर्वत पर  सुन्दर अन्न उत्पन्न होता है,, या,, खाद्य वस्तुएं/रत्नभंडार  हैं
(४ ) नग -नग ,नग सरकार ===
वृक्ष-वृक्ष पर सर्प  का सुन्दर  राज है
या ,,पर्वत-पर्वत,वृक्ष-वृक्ष पर सूर्य का सुन्दर शासन है ,,,सब कुछ उसी के कारण  है


दोहा =एक अलग अंदाज में


*****दोहा =एक अलग अंदाज में ***** [अर्थ सहित]
जग जग ,जग जग ,जग हवै ,जग जग ,जग के गीत  ।
जग जग ,जग जग ,जग जगे ,जग जग, जग सी रीत ।।
********सुरेशपाल वर्मा जसाला [२२ मार्च २०१५]

शब्दार्थ ===जग= संसार ,जागना [जागरण ] , संसार के लोग ,यज्ञ
अर्थ ---
इस संसार में जन जागरण (प्रभु में विश्वास को दृढ करने, एवं मनोसिद्धि  ) के लिए यज्ञ होते हैं। संसार में ऐसे यज्ञ के यज्ञ पुरुष (देवताओं ) के लिए मंगल गीत गाए जाते हैं ,,,इस प्रकार संसार में जन जागरण होता है ,,,यह संसार को जगाने या जागरण की यज्ञ प्रधान रीत /विधि है.। 


विधा - गीतिका (हिंदी ग़ज़ल)

विधा - गीतिका (हिंदी ग़ज़ल)
मापनी - 16,16 मात्रा के राधेश्यमी छंद पर आधारित
समान्त - आया , पदांत - (अपदान्त गीतिका)
***********************************************
मृगछौनों की मुस्कानों में , ''''''''''''''आनंद नहीं जिसने पाया ।
अनुभागी वो पशुता का है , '''''''''उसकी मिथ्या मानुष काया ।।

इठलाते मन भावों को जब , '''''''''''''''कर देते हैं अनदेखा हम ।
समझो हमनें कलशामृत को ,'''''''''''''''' है अंजाने में ठुकराया ।।

दन्तों की चमचम तडित-जडित ,''ढलती है जब मुस्कानों में ।
तब स्वर्ग अवतरित धरती पर ,''''' मन देवों का भी भरमाया ।।

कर पाया भान न दृढ़ता का , '''पाहन का अवलोकन कर भी ।
है उसका ज्ञान अधूरा ही , ''''''''''''''उसने मन यों ही भटकाया ।।

चोटी पर बैठ कहे कागा , ''''''''''''''''''''''''जीता है मैंने चोटी को ।
यह कहे 'जसाला' अर्ध सत्य, '''''''पूरा सच समझ नहीं आया ।।

*****************सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

**दोहा छंद**

**दोहा छंद**
माँ दुर्गा मुझ पर बहे ,करुणा की रसधार ;
संकट सारे कट भगैं ,मन हो शुद्ध विचार । [१]

मात कृपा ऐसी करो ,करूँ में सबसे प्यार ;
दुर्गा चंडी कालिके  ,,,कीजै नाश विकार । [२]

मैं पापों की गाठरी ;सदा बुद्धि से हीन ;
अष्ट भुजी के नाम से ;तरा-तरा मैं दीन । [३]

धन लौलुप तो हो गए ; मति -भ्रम दुर्बल दीन ;
माँ दुर्गा के कोप से,,,,,,, होते सब श्रीहीन ।[४]

माता-माता सब कहे ,सब ऊपर की बात ;
मन से अम्बे को जपें ,,,,कैसे हो आघात । [५]

*******सुरेशपाल वर्मा  जसाला [दिल्ली]

**केसर की इस खेती में***[4 ]***[ओजपूर्ण]

***केसर की इस खेती में***[4 ]***[ओजपूर्ण]
*******************************
भारत माँ की खुशहाली का रंग जमाने आया हूँ
उसकी सोंधी माटी का मैं गीत सुनाने आया हूँ
सुसुप्त पड़ी हैं जो ज्वाला आग दिखाने आया हूँ
भारत माँ के शेरों  को मैं आज जगाने आया हूँ

भोले के तांडव के संग में डमरू आज बजा देंगे
माँ काली के खप्पर को भी खून-खून से भर देंगे
उठेंगी जो भी आँखे आज उनका पौरुष हर लेंगे
काश्मीर के हर दुश्मन को खाक-खाक में कर देंगे

माँ की ममता के कानों में स्वर्ण चढानें आया हूँ
आतंकी की सोच-तोड़ का व्यूह रचानें आया हूँ
गद्दारों की चाल-ढाल का तोड़ बताने आया हूँ
भारत माँ के चरणों में मैं शीश झुकानें आया हूँ
--------- [ क्रमशः -5 ]
 सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]
21 अप्रैल 2015

*केशर की इस खेती में [ओज की रचना ]***[३]


***केशर की इस खेती में [ओज की रचना ]***[३]
पाप-पुण्य की भाषा का मैं सार बताने आया हूँ !
तुम सभी के अंदर का मैं शेर जगाने आया हूँ !!
घोल रहे जो विष की हाला 
ड़ल झील की क्यारी में !
झेलम को जो नर्क बनाएँ 
उल्टी -सीधी बयानी में !
नफरत वाली हवा बहाएँ 
केसर वाली घाटी में !
मर्यादाएं उलट रहे हैं 
भारत माँ की माटी में !
अंगारों के शब्दों से मैं तुम्हे बताने आया हूँ !
तुम सभी के अंदर का मैं शेर जगाने आया हूँ !!
पिद्दी सी एक चींटी भी 
सिंह को आँख दिखाती है !
हम लोगों की रोटी भी 
उनके पेट में जाती है !
आपत्ति के हर हाल में
हम ही हाथ बढ़ाते हैं !
मानवता की खातिर हम 
उन पर जान लुटाते हैं !
देश-भक्ति रोम-रोम में बात बताने आया हूँ !
तुम सभी के अंदर का मैं शेर जगाने आया हूँ !!
 ;,,,[क्रमशः ४]
*****[सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली ]
______________ 2014 ,,,, मार्च 19

**केसर की इस खेती में*[२]****[ओजपूर्ण ]

******केसर की इस खेती में*[२]****[ओजपूर्ण ]

लोकतंत्र के चौराहे पर ,,,,,,,,,,आतंकी को फांसी दो
पनपाता है जो आतंक ,,,,,,उस आका को फांसी दो
संविधान के दुश्मनों को ,,,,,,,,चौराहों पर फांसी दो
उगल रहा है जो जहर ,,,,,उस मसरत को फांसी दो

पनप रहे हैं जो बिच्छू  ,,,,,अग्निकुंड में भस्म करो
आस्तीन के साँपों को ,,,,,,अग्निकुंड में भस्म करो
भारत माँ के हत्यारों को ,,,अग्निकुंड में भस्म करो
दानवता के हर पाप को ,,,,अग्निकुंड में भस्म करो
तिरंगे का अपमान करे जो ,अग्निकुंड में भस्म करो
************सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]
-----------------------------[17 मार्च 2015 ]





***केसर की इस खेती में***[१]--[ओजपूर्ण]

 ***केसर की इस खेती में***[१]--[ओजपूर्ण]
**************************
आज विधान है पंगु  क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
जहर उगलती भाषा क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
आजादी को गाली क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
पनप रही  गद्दारी क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
देशद्रोह की अग्नि क्यूँ
केसर की इस खेती में ;

आतंकी को बिरयानी क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
खून-खून का बैरी क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
माँ की आँखों  पानी क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
बदलें आज समय को हम
केसर की इस खेती में
देशद्रोह की छाती तोड़ें
केसर की इस खेती में ;[ क्रमशः२ ]
*****************सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

*निराश आदमी *

****निराश आदमी ****
एक आदमी हताश
बड़ा ही निराश
आँखों में पानी
आत्महत्या करने की ठानी,
फिर सोचने लगा कैसे दूँ प्राण अपने
सोचते-सोचते उसे ध्यान आया-
जंगल में एक नरभक्षी आया',
मैं भी उसके पास जाऊंगा
उसके भूखे पेट का निवाला बन-
 संसार से मुक्ति पाउँगा ,
इसी उद्देश्य -
पहुंच गया  वो जंगल प्रदेश
सो रहा था शेर -
वृक्ष के नीचे लेट,
नहीं की देरी -
जा खींची पूँछ केसरी ,
आई दहाड़  बेसुरी-
अरे जा चला जा यहाँ से ,
क्यूँ मरता है मेरे हाथों से ,

आदमी बोला -
नहीं मैं नहीं जाऊंगा ,
तेरे भूखे पेट का निवाला बन -
संसार से मुक्ति पाउँगा,
शेर बोला -
अरे नादान  !
इतना तो मैं जभी समझ गया था
 जब तूने मुझे, सोते को जगाया था
वही आदमी खींच सकता है मेरी पूंछ -
जो चाहता है करना दुनिया से कूच ,
अरे बेवकूफ !
मैं शेर हूँ ,जंगल का राजा हूँ ,
राजा कभी भीख नहीं लेता ,
इसलिए तू जा
मुझे नहीं चाहिए दान -
तेरे जैसे कायर की जान,
अगर मैं कायर का मांस खाऊंगा
तो मैं भी कायर हो जाऊंगा -
फिर मैं जंगल का राजा-
कैसे रह पाऊँगा ?
******सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

  





'' कवितालोक रत्न सम्मान'


**''' कवितालोक रत्न सम्मान'''** एवं वीर-रस काव्य पाठ '''**
 दिनाँक 26 अप्रैल 2015 को हिसार (हरियाणा) साक्षी रहा ,,वहां की हवा ,खुशबू साक्षी रही ,,वहां का कण-कण साक्षी रहा ,,कवितालोक शतकीय महाकुम्भ के ''एक अनूठे इतिहास का ''
मुझे भी इस ऐतिहासिक अवसर  पर '''कवितालोक रत्न सम्मान''' के  साथ-साथ वीर-रस का  काव्य-पाठ  करने का भी सुअवसर मिला ,,, मुझ पर उड़ेले गए अथाह स्नेह के लिए,, हिसार की धरा और वहां की सुधि जनता का हृदय की गहराइयों से अभिनंदन एवं वंदन करता हूँ,,,,आदरणीय यह सब आपकी शुभकामनाओं का प्रतिफल है ,,,जी आपका हृदय से अभिनंदन ,,,आपको भी तो मिला है आपको भी बहुत-बहुत बधाई
******************************************************************************
@@@@@,,हम सब की ओर से निम्न  सभी सफल  आयोजन कर्ताओं का हृदयस्पन्दित आभार एवं इन्हें अंतस से अभिनन्दन -पुष्प समर्पित -----
***श्री गुमनाम कवि जी [एडमिन कवितालोक]
***श्री तिलक जैन जी [संयोजक ;;सम्मान समारोह एवं अखिल भारतीय कवि सम्मेलन ,,हिसार]
***डा. शमीम शर्मा जी [मंच  संचालिका ]
***डा. चंद्रशेखर जी [मंच सह संचालक]
{{{{मुझे भी इस ऐतिहासिक भूमि पर ''' कवितालोक रत्न सम्मान''' । }}}}

*वो कवि कवि नहीं *

 ******वो कवि कवि नहीं ******
वो कवि कवि नहीं ,,जिसकी कलम में धार नहीं ;
वो कवि कवि नहीं ,करता जो बुराई पर वार नहीं ;
है यदि तरकस  में उसके,शब्द भेदी बाण भण्डार ;
तो उसके आगे,,,,,, टिके कोई तीर तलवार नहीं ।-------------[१]
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वो कवि कवि नहीं ,,,,,,,,,जिसकी कलम में धार नहीं ;
वो कवि कवि नहीं ,,,, जिसका वीरों से सरोकार नहीं ;
है यदि  उसके पास ,वीरों को सजदा करने वाले शब्द ;
तो उससे बढ़कर ,,,,,,,,,,,,वीरो का कोई सत्कार नहीं ।---------[२]
*******सुरेशपाल वर्मा 'जसाला'

** कुछ मुक्तक **

******** कुछ  मुक्तक **************

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उद्दण्डता के छन आज भी  भूल नहीं पाते हैं;
रुसवाई की नटखट जिद सा शूल नहीं पाते हैं ;
खिलकर कली कब फूल बनी ये गुत्थी उत्तरहीन  ;
मिलन-खिलन की मुस्कानों सा फूल नहीं पाते  हैं.। ----{१ }
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आतंकी जमीं  पर,,,,,,, बारूद की खेती है ;
प्यार की फसल में भी, विष की ही रेती है ;
इंसानियत तार-तार,,, हकीकत भी रोती ;
दरिंदों के दिल की तो,, दरिंदगी चहेती है । --------------{२ }
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ईश्वर के इक रूप में है धूप का भी मान ;
मौसम के संभाग में है धूप की ही शान ;
धूप सुहानी मस्तानी कभी जिंदगानी है;
 धूप से ही सृष्टि में है सभी गुणों का भान।---------------{३}
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चार रंग में सिमटी दुनिया ,,,,,बाकी  इनका मेल है ;
पीला नीला लाल हरा से ,,,,बस बनता सारा खेल है ;
मेल करा दें इन रंगों का ,,,,,,,,,,बन जाते नव रंग हैं ;
बस प्यार से खिले ये दुनिया, बिना प्यार तो जेल है।----{४}
*****************सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

क्यूँ मन में उठ रहे अनेकों ज्वार अब ;

क्यूँ मन में उठ रहे अनेकों ज्वार अब ;
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क्यूँ मन में उठ रहे अनेकों ज्वार अब ;
क्यूँ तन में चढ़ रहा तीव्रतम बुखार अब;
अवसर चूका है तुमने हुआ उनका अवसान है ;
लौटा न सकोगे तुम कभी मातृ-पितृ उधार अब ।
******सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

*****गाँव पर एक मुक्तक *****


*****गाँव पर एक मुक्तक *****

मेरे मन की आहों को,,,,,,  जहाँ विश्राम मिले ;
मेरे तन की पीड़ा  को,,,,,,  जहाँ आराम मिले ;
ऐसा है गाँव सजीला ,,,,,,,,हरे कष्ट सभी का ;
अपनेपन की सरिता तो ,वहाँ अविराम मिले।
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]