सोमवार, 11 मई 2015

**केसर की इस खेती में***[4 ]***[ओजपूर्ण]

***केसर की इस खेती में***[4 ]***[ओजपूर्ण]
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भारत माँ की खुशहाली का रंग जमाने आया हूँ
उसकी सोंधी माटी का मैं गीत सुनाने आया हूँ
सुसुप्त पड़ी हैं जो ज्वाला आग दिखाने आया हूँ
भारत माँ के शेरों  को मैं आज जगाने आया हूँ

भोले के तांडव के संग में डमरू आज बजा देंगे
माँ काली के खप्पर को भी खून-खून से भर देंगे
उठेंगी जो भी आँखे आज उनका पौरुष हर लेंगे
काश्मीर के हर दुश्मन को खाक-खाक में कर देंगे

माँ की ममता के कानों में स्वर्ण चढानें आया हूँ
आतंकी की सोच-तोड़ का व्यूह रचानें आया हूँ
गद्दारों की चाल-ढाल का तोड़ बताने आया हूँ
भारत माँ के चरणों में मैं शीश झुकानें आया हूँ
--------- [ क्रमशः -5 ]
 सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]
21 अप्रैल 2015

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