सोमवार, 11 मई 2015

*पेश है एक नया दोहा ,,,नए अंदाज में *


*****पेश है एक नया दोहा ,,,नए अंदाज में *****
नग- नग, नग -नग, नग मिलें ,नग -नग, नग -नर- नार ;
नग- नग, नग सा नाज है ,,,,,,,,,;नग -नग ,नग सरकार  । 
*********सुरेशपाल वर्मा जसाला (२० मार्च २०१५)
शब्दार्थ--
नग =पहाड़, वृक्ष, सर्प, सूर्य, रत्न ,सुन्दर
नाज =नखरा ,अन्न

(यमक ,श्लेष ,अनुप्रास का एक प्यारा सा अंदाज )
अर्थ ====
(१ ) नग- नग, नग -नग, नग मिलें==
पर्वत-पर्वत ,वृक्षों -वृक्षों के ऊपर सर्प /सूर्य के दर्शन होते हैं
 या ,,, सुन्दर रत्न भी मिलते हैं
(२ ) नग -नग, नग -नर- नार===
 पर्वत-पर्वत पर वृक्ष/सूर्य /सर्प ,पुरुष व् नारी दिखाई पड़ते हैं
(३ )नग- नग, नग सा नाज है===
  पर्वत-पर्वत तना खड़ा है और उसमें उत्तमता का नखरा /गर्व है ,,,या
पर्वत-पर्वत पर  सुन्दर अन्न उत्पन्न होता है,, या,, खाद्य वस्तुएं/रत्नभंडार  हैं
(४ ) नग -नग ,नग सरकार ===
वृक्ष-वृक्ष पर सर्प  का सुन्दर  राज है
या ,,पर्वत-पर्वत,वृक्ष-वृक्ष पर सूर्य का सुन्दर शासन है ,,,सब कुछ उसी के कारण  है


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें