बुधवार, 22 जुलाई 2015

गीतिका : (तोता बैठा है मंदिर पर)



विधा-गीतिका
मात्राभार -16 +16 प्रति पंक्ति ,,,मापनी मुक्त 
केवल पदांत =ऐना
तोता बैठा है मंदिर पर ,,,,,,,,,,,,,,,मस्जिद पर बैठी है मैना ,
दूर-दूर बैठे  है दोनों  ,,,,,,,,,,,,,,,,पर डोर प्रेम की दिन -रैना ।
नाचे मोर चर्च के ऊपर ,,,,,,,,,,,कोकिल कूके गुरु-द्वारे पर ,
जब तक आँखे चार न कर लें ,कभी न मिलती उनको चैना ।
 मंदिर तोता उड़ मस्जिद पे ,,,,,,मस्जिद की मैना मंदिर पे ,
उड़ते दोनों सँग -सँग देखो ,,,,,,,,,,,,भेदभाव कोई मन है ना ।
कभी मोर गुरु-द्वारे जाता,,,,,,,,,अरु कोयल जाती चर्चों पर ,
कूक -कूक मस्ती में गावें ,,,,,,,,,,मोहक उनके मिसरी बैना ।
भेदभाव क्यूँ हमने धारा ,,,,,,क्यूँ नफ़रत पाली मन-मन में ,
धो डालें आओ दाग सभी ,,,,,,,,,,ये  रगड़ प्रीत-साबुन फैना ।










कहे जसाला स्वयं को बदले ,,,,बदल जायेगी सारी  दुनिया ,
स्वार्थ की जंजीरें तोड़ें ,,,,,,,,,,,,,,,,,,चमक उठेंगे सबके नैना ।
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

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