******चार - दोहे ******
[1 ]
चिन्ता -दीमक कर रही ,थोथी सबकी देह ;
विपत्ति के इस हाल में ,किसका किससे नेह।
[2 ]
मैं तो प्यारा हूँ नहीं ,प्यारे मेरे बोल ;
कर्कश नारियल उर में ,होवे मीठा घोल ।
[3 ]
ज़र जोरू और ज़मीन,हैं झगड़े के मूल ;
रहे नाथ के पास जो ,उगै कभी न शूल।
[4]
धरम -करम के सार को ,रहे कृष्ण जी सींच;
राजनीति के व्याल को ,रक्खा गर्दन भींच।
********सुरेशपाल वर्मा जसाला
[1 ]
चिन्ता -दीमक कर रही ,थोथी सबकी देह ;
विपत्ति के इस हाल में ,किसका किससे नेह।
[2 ]
मैं तो प्यारा हूँ नहीं ,प्यारे मेरे बोल ;
कर्कश नारियल उर में ,होवे मीठा घोल ।
[3 ]
ज़र जोरू और ज़मीन,हैं झगड़े के मूल ;
रहे नाथ के पास जो ,उगै कभी न शूल।
[4]
धरम -करम के सार को ,रहे कृष्ण जी सींच;
राजनीति के व्याल को ,रक्खा गर्दन भींच।
********सुरेशपाल वर्मा जसाला
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