सोमवार, 11 मई 2015

विधा - गीतिका (हिंदी ग़ज़ल)

विधा - गीतिका (हिंदी ग़ज़ल)
मापनी - 16,16 मात्रा के राधेश्यमी छंद पर आधारित
समान्त - आया , पदांत - (अपदान्त गीतिका)
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मृगछौनों की मुस्कानों में , ''''''''''''''आनंद नहीं जिसने पाया ।
अनुभागी वो पशुता का है , '''''''''उसकी मिथ्या मानुष काया ।।

इठलाते मन भावों को जब , '''''''''''''''कर देते हैं अनदेखा हम ।
समझो हमनें कलशामृत को ,'''''''''''''''' है अंजाने में ठुकराया ।।

दन्तों की चमचम तडित-जडित ,''ढलती है जब मुस्कानों में ।
तब स्वर्ग अवतरित धरती पर ,''''' मन देवों का भी भरमाया ।।

कर पाया भान न दृढ़ता का , '''पाहन का अवलोकन कर भी ।
है उसका ज्ञान अधूरा ही , ''''''''''''''उसने मन यों ही भटकाया ।।

चोटी पर बैठ कहे कागा , ''''''''''''''''''''''''जीता है मैंने चोटी को ।
यह कहे 'जसाला' अर्ध सत्य, '''''''पूरा सच समझ नहीं आया ।।

*****************सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

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