रविवार, 23 अगस्त 2015

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **(नया प्रयोग)

**सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक **
मित्रों ! यह नया प्रयोग करने का प्रयास किया है,,,,कृपया प्रतिक्रिया अवश्य दें ----
(दोहे के साथ ,,,जिस शब्द से पँक्ति समाप्त होती है ,,उसी शब्द से अगली पंक्ति प्रारम्भ होती है ,,,हर पंक्ति १३+११ मात्राभार रखती है )मुक्तक में तीसरी पंक्ति का तुकांत भिन्न होता है.
*****दोहा मात्राक्रम प्रति पंक्ति -
4 +4 +2 +3 (1 2 ),,,,,,4 +4+3 (2 1)
या
3+3+4+3 (1 2),,,,,,,3+3+2+3 (2 1 )
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[1]
माँ शारदे नमन तुम्हे, नमन अनेकों बार ;
बार-बार वंदन करूँ ,, शीश तुम्हारे द्वार ।
द्वार सजे हैं भाव से ,नेह-सुमन की माल ;
माल खजाने शब्द से,,करो ज्ञान विस्तार।

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[2]
मन गंगा का राज है ,दिल में है हरि- द्वार ;
द्वार हर्ष के खुल रहे ,,,,,ये जीवन का सार ।
सार रूप में यूँ कहें,,,,,,,,,,ईश्वर सबके साथ ;
साथ सभी के साथ से,,,,हो जीवन विस्तार।


*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)
------------------[15 अगस्त 2015 ]

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