***केशर की इस खेती में [ओज की रचना ]***[३]
पाप-पुण्य की भाषा का मैं सार बताने आया हूँ !
तुम सभी के अंदर का मैं शेर जगाने आया हूँ !!
घोल रहे जो विष की हाला
ड़ल झील की क्यारी में !
झेलम को जो नर्क बनाएँ
उल्टी -सीधी बयानी में !
नफरत वाली हवा बहाएँ
केसर वाली घाटी में !
मर्यादाएं उलट रहे हैं
भारत माँ की माटी में !
अंगारों के शब्दों से मैं तुम्हे बताने आया हूँ !
तुम सभी के अंदर का मैं शेर जगाने आया हूँ !!
पिद्दी सी एक चींटी भी
सिंह को आँख दिखाती है !
हम लोगों की रोटी भी
उनके पेट में जाती है !
आपत्ति के हर हाल में
हम ही हाथ बढ़ाते हैं !
मानवता की खातिर हम
उन पर जान लुटाते हैं !
देश-भक्ति रोम-रोम में बात बताने आया हूँ !
तुम सभी के अंदर का मैं शेर जगाने आया हूँ !!
;,,,[क्रमशः ४]
*****[सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली ]
______________ 2014 ,,,, मार्च 19
______________ 2014 ,,,, मार्च 19
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