सोमवार, 11 मई 2015

*केशर की इस खेती में [ओज की रचना ]***[३]


***केशर की इस खेती में [ओज की रचना ]***[३]
पाप-पुण्य की भाषा का मैं सार बताने आया हूँ !
तुम सभी के अंदर का मैं शेर जगाने आया हूँ !!
घोल रहे जो विष की हाला 
ड़ल झील की क्यारी में !
झेलम को जो नर्क बनाएँ 
उल्टी -सीधी बयानी में !
नफरत वाली हवा बहाएँ 
केसर वाली घाटी में !
मर्यादाएं उलट रहे हैं 
भारत माँ की माटी में !
अंगारों के शब्दों से मैं तुम्हे बताने आया हूँ !
तुम सभी के अंदर का मैं शेर जगाने आया हूँ !!
पिद्दी सी एक चींटी भी 
सिंह को आँख दिखाती है !
हम लोगों की रोटी भी 
उनके पेट में जाती है !
आपत्ति के हर हाल में
हम ही हाथ बढ़ाते हैं !
मानवता की खातिर हम 
उन पर जान लुटाते हैं !
देश-भक्ति रोम-रोम में बात बताने आया हूँ !
तुम सभी के अंदर का मैं शेर जगाने आया हूँ !!
 ;,,,[क्रमशः ४]
*****[सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली ]
______________ 2014 ,,,, मार्च 19

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें