शुक्रवार, 22 मई 2015

मेरी अर्द्ध -वार्षिक पत्रिका ''अनमोल सिक्के ''

मित्रों ! मेरी अर्द्ध -वार्षिक पत्रिका
 ''अनमोल सिक्के ''
का प्रथम अंक
जनवरी से जून  2015

मेरी पुस्तक ( प्रथम / द्वितीय )

 मेरी  प्रथम पुस्तक 
   ''मैं भी कुछ कहता हूँ ''         
            (काव्य-संग्रह )
    
मेरी द्वितीय   पुस्तक
      ''बाल मन और सिंहासन ''
                 (बाल काव्य-संग्रह )

मेरी पुस्तक (तृतीय / चतुर्थ )

मेरी तृतीय पुस्तक
        ''जीवन के रंग   ''
               (संस्मरण-संग्रह )

मेरी चतुर्थ  पुस्तक
      ''महाशिला का कण ''
                 (काव्य-संग्रह )

गुरुवार, 21 मई 2015

***हमने उसमें नाज़ सा देखा***


हमने उसमें नाज़ सा देखा;
दम्भीपन का राज सा देखा ।

चुनरी उड़ती देख रंगीली ;
उसको उड़ता बाज़ सा देखा ।

वो बेढंगा बेसलीका है  ;
तो भी लिपटा  लाज़ सा देखा ।

रहता कोसों दूर बेचारा ;
सम्बन्ध बटन काज सा देखा ।

सीधा -सादा ना अहंकारी ;
पर वो सर का ताज सा देखा ।

गुरबत में भी हार ना मानें  ;
नासाजी में साज़ सा देखा ।

पंथ जसाला लेय सुन्हेरा ;
बेमानी पे  गाज़ सा देखा ।
****सुरेशपाल  वर्मा जसाला [दिल्ली]

सोमवार, 18 मई 2015

गाँव (*गाँव पर एक कुंडली *)

*****गाँव पर एक कुंडली *****
काना-बतिया  कर रहे ,,वृक्ष सभी इक साथ ;
क्रन्दित शाखा झुक रही ,,,,पकड़ै मेरे हाथ ।
पकड़ै मेरे हाथ ,,,,,,,,,,,,पात भी राग सुनावै ;
डगर- खेत-खलिहान,,,सभी मस्ती में गावैं ।
पक्षी कलरव होय,,,,, मधुर आनंदित गाना ;
आवे बचपन याद,,,,,,,,उडे जो कौआ काना ।


*************सुरेशपाल वर्मा जसाला

शुक्रवार, 15 मई 2015

सुभाषचन्द्र बॉस पर एक मुक्तक












***** सुभाषचन्द्र बॉस पर एक मुक्तक*****
सुभाष चंद्र सा वीर लाडला ,,,,,,,,अंग्रेजी शासन गहने लगा ;
''खून के बदले लो आजादी '',,,,  मंत्र ये सभी से कहने लगा ;
ठोक दी कीलें उस चरखी में ,,,,,,जो अंगरेजों की चलती थी ;
वो सिंह-गर्जना कर दी ऐसी,शासक भी कम्पित रहने लगा ।
******सुरेशपाल वर्मा जसाला [शाहदरा-दिल्ली]


*** रे मानव ***

*** रे मानव ***
***************
रे मानव !
क्यूँ अंगारों से खेल रहा
अणु- परमाणु के चक्रव्यूह में -
जीवन अपना ठेल रहा ,
क्रंदन -खण्डन के गीतों में -
होती वंदन महक कहाँ ?
अस्त्र -शस्त्र की कोप- गाह में -
परमानन्दी चहक कहाँ ?
है अभिलाषा कुत्सित तेरी -
तू स्वार्थ बोध में अटक रहा ,
विनाश शिखर पर बैठा-बैठा -
हाथ पैर को पटक रहा ,
भूल गया तू यहाँ सभी को -
ये सब तेरे हैं अपने ,
जहाँ भी शस्त्र चलेगा तेरा -
टूटेंगे अपनों के सपने ।

टूट गए यदि रिश्ते सारे -
होगा तू भी चकनाचूर यहाँ ,
चाहता है जो बना रहे -
अस्तित्व तेरा इस जहाँ ,
अस्त्र -शस्त्र की होड़ छोड़ -
प्रणय का पैगाम फैला ,
प्रचंड- प्रलय की ज्वाला से -
मधुर- सुगन्धि पवन चला ,
अहिंसावादी ब्रह्मास्त्र से-
कर दे छिन्न पापों का मस्तक ,
निश्छल भाव जगत में धर दे -
प्रणयी रश्मि की दस्तक ।
व्यर्थ अर्थ जो कर रहा तू -
शस्त्रों की निर्माण शक्ल में-
मन तेरा फंसा हुआ है -
भाव शून्य मकड़ जाल में ,
बन्धनमुक्त कर झंकृत कर दे -
व्यापकता की मधुर तान से ,
''वसुधैव कुटुम्ब ''हो नारा तेरा -
मैं भी तेरे साथ चलूँ ,
तेरे नव- उद्घोष की खातिर -
जन-मन में उद्गार भरूं ,
त्याग विनाश की प्रकृति को -
सृजन को तू गले लगा ,
धता बता दे भेदभाव को -
नई सोच, नई उमंग जगा ।
----------सुरेशपाल वर्मा ''जसाला '' [दिल्ली ]

बुधवार, 13 मई 2015

*वीर जवानों की गाथायें *












*******वीर जवानों की गाथायें *******[भाग- 1 ]
वीर जवानों की गाथायें,तुमको आज सुनाता हूँ ;
तूफानों में डटे रहे जो ,उनको शीश झुकता हूँ ;
कर्मपथ के वे अनुरागी ,मैं  तो उनका दास हूँ ;
उनकी ही आजादी में ,लेता खुलकर साँस हूँ ;
भारत माँ के प्रणय हेतु ,करता ये अहसास हूँ ;
गाकर गाथा उन वीरों की ,मन से मैं मुस्काता हूँ ;
वीर जवानों की गाथायें--------------------------
चढ़ चेतक पर राणा प्रताप ,हर-हर बम-बम बोले थे ;
काँप उठा था शत्रु सारा ,वीर शिवा जब डोले थे ;
मंगल पांडे की चिंगारी ,रंग आजादी लाई थी ;
लक्ष्मीबाई भी बन काली ,अंग्रेजों पर छाई थी ;
राजगुरु सुखदेव भगत ने, फांसी गले लगाई थी ;
शेखर की पिस्तौल के आगे, नतमस्तक हो जाता हूँ;
वीर जवानों की गाथायें--------------------------




गोविंदसिंह का बाज उडा था ,फुर-फुर-फुर-फुर नभ में ;
ऊधमसिंह भी कूद पड़ा था , आजादी की जंग में ;
तात्यां ने भी मरघट भेजा ,अंग्रेजों को रण में ;
पंजाब केसरी की केसर की,मधुर सुगन्धी फैली थी ;
लोह पुरुष की आँखें भी ,अंगारो सी दहकी थी ;
दुश्मन का सीना चीर धरे जो,उनकी गाथा कहता हूँ ;
वीर जवानों की गाथायें--------------------------

नेताजी के सम्भाषण की,एक अनोखी मौज थी ;
वीर बांकुरों से अलंकृत, आजाद हिन्द फ़ौज थी ;
आजादी के मतवालों की ,बढ़ती हिम्मत रोज थी ;
रणभूमि में  गर्जन करता, ऐसा सिंह एक था ;
भारत माँ की आजादी का उसका सपना नेक था ;
खून के बदले आजादी की ,पहेली एक बुझाता हूँ ;
वीर जवानों की गाथायें-------------------------
*******सुरेशपाल वर्मा 'जसाला '

सम्मान ( ''' कवितालोक रत्न सम्मान''' )


हिसार (हरियाणा) साक्षी रहा ,,वहां की हवा ,खुशबू साक्षी रही ,,वहां का कण-कण साक्षी रहा ,,''एक अनूठे इतिहास का ''
जहां एक अद्वित्य पुस्तक ''कवितालोक '' [जिसमें श्रेष्ठ रचनाकारों की ,,,शिल्प विधान सहित 82 श्रेष्ठतम  रचनाओं को  शामिल किया गया है ] के लोकार्पण के पावन अवसर पर ,,,, कवि श्रेष्ठों को  सम्मान देकर वहां के संजीदा, मृदुल- हृदया जन-गण ने   ऐतिहासिक पलों  को सदा-सदा के लिए अपने नाम कर लिया ,,,
 चित्र ;;;;;दिनाँक 26 अप्रैल 2015 ;;;;,,
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संपादक : ओम नीरव जी [जिनको काव्य-शिरोमणि सम्मान से अलंकृत किया गया]
प्रबंध संपादक : मनोज मानव जी [जिन्हे कवितालोक रत्न सम्मान से अलंकृत किया गया]
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******{{{{मुझे भी इस ऐतिहासिक भूमि पर ''' कवितालोक रत्न सम्मान''' के साथ-साथ वीर-रस का  काव्य-पाठ  करने का सुअवसर मिला ,,,और उनके द्वारा मुझ पर उड़ेले गए अथाह स्नेह के लिए,, हिसार की धरा और वहां की सुधि जनता का हृदय की गहराइयों से अभिनंदन एवं वंदन करता हूँ,,,आभार सभी का । }}}}
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@@@@@,,हम सब की ओर से निम्न  सभी सफल  आयोजन कर्ताओं का हृदयस्पन्दित आभार एवं इन्हें अंतस से अभिनन्दन -पुष्प समर्पित -----
***श्री गुमनाम कवि जी [एडमिन कवितालोक]
***श्री तिलक जैन जी [संयोजक ;;सम्मान समारोह एवं अखिल भारतीय कवि सम्मेलन ,,हिसार]
***डा. शमीम शर्मा जी [मंच  संचालिका ]
***डा. चंद्रशेखर जी [मंच सह संचालक]

माँ पर एक मुक्तक

*माँ पर एक मुक्तक ******** 
माँ के आँचल में होता है ,,,,हम सबका सम्मान सखी ;
माँ की ममता ढाल बने औ,,, करती है कल्याण सखी ;
स्वर्ग-धरा का कर सकते हैं ,केवल हम अनुमान मगर ;
माँ के चरणों में तो होता  ,,,,,,,, परमानंदी  मान सखी.
****सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

सोमवार, 11 मई 2015

*चार - दोहे *

******चार - दोहे ******
[1 ]
चिन्ता  -दीमक कर रही ,थोथी सबकी देह ;
विपत्ति के इस हाल में ,किसका किससे नेह।
[2 ]
 मैं तो प्यारा हूँ नहीं ,प्यारे मेरे बोल ;
कर्कश नारियल उर में ,होवे मीठा घोल ।
[3 ]
ज़र जोरू और ज़मीन,हैं झगड़े के मूल ;
रहे नाथ के पास जो ,उगै कभी न शूल।
[4]
धरम -करम के  सार को ,रहे कृष्ण जी सींच;
राजनीति के व्याल को ,रक्खा गर्दन भींच।


********सुरेशपाल वर्मा जसाला



*पेश है एक नया दोहा ,,,नए अंदाज में *


*****पेश है एक नया दोहा ,,,नए अंदाज में *****
नग- नग, नग -नग, नग मिलें ,नग -नग, नग -नर- नार ;
नग- नग, नग सा नाज है ,,,,,,,,,;नग -नग ,नग सरकार  । 
*********सुरेशपाल वर्मा जसाला (२० मार्च २०१५)
शब्दार्थ--
नग =पहाड़, वृक्ष, सर्प, सूर्य, रत्न ,सुन्दर
नाज =नखरा ,अन्न

(यमक ,श्लेष ,अनुप्रास का एक प्यारा सा अंदाज )
अर्थ ====
(१ ) नग- नग, नग -नग, नग मिलें==
पर्वत-पर्वत ,वृक्षों -वृक्षों के ऊपर सर्प /सूर्य के दर्शन होते हैं
 या ,,, सुन्दर रत्न भी मिलते हैं
(२ ) नग -नग, नग -नर- नार===
 पर्वत-पर्वत पर वृक्ष/सूर्य /सर्प ,पुरुष व् नारी दिखाई पड़ते हैं
(३ )नग- नग, नग सा नाज है===
  पर्वत-पर्वत तना खड़ा है और उसमें उत्तमता का नखरा /गर्व है ,,,या
पर्वत-पर्वत पर  सुन्दर अन्न उत्पन्न होता है,, या,, खाद्य वस्तुएं/रत्नभंडार  हैं
(४ ) नग -नग ,नग सरकार ===
वृक्ष-वृक्ष पर सर्प  का सुन्दर  राज है
या ,,पर्वत-पर्वत,वृक्ष-वृक्ष पर सूर्य का सुन्दर शासन है ,,,सब कुछ उसी के कारण  है


दोहा =एक अलग अंदाज में


*****दोहा =एक अलग अंदाज में ***** [अर्थ सहित]
जग जग ,जग जग ,जग हवै ,जग जग ,जग के गीत  ।
जग जग ,जग जग ,जग जगे ,जग जग, जग सी रीत ।।
********सुरेशपाल वर्मा जसाला [२२ मार्च २०१५]

शब्दार्थ ===जग= संसार ,जागना [जागरण ] , संसार के लोग ,यज्ञ
अर्थ ---
इस संसार में जन जागरण (प्रभु में विश्वास को दृढ करने, एवं मनोसिद्धि  ) के लिए यज्ञ होते हैं। संसार में ऐसे यज्ञ के यज्ञ पुरुष (देवताओं ) के लिए मंगल गीत गाए जाते हैं ,,,इस प्रकार संसार में जन जागरण होता है ,,,यह संसार को जगाने या जागरण की यज्ञ प्रधान रीत /विधि है.। 


विधा - गीतिका (हिंदी ग़ज़ल)

विधा - गीतिका (हिंदी ग़ज़ल)
मापनी - 16,16 मात्रा के राधेश्यमी छंद पर आधारित
समान्त - आया , पदांत - (अपदान्त गीतिका)
***********************************************
मृगछौनों की मुस्कानों में , ''''''''''''''आनंद नहीं जिसने पाया ।
अनुभागी वो पशुता का है , '''''''''उसकी मिथ्या मानुष काया ।।

इठलाते मन भावों को जब , '''''''''''''''कर देते हैं अनदेखा हम ।
समझो हमनें कलशामृत को ,'''''''''''''''' है अंजाने में ठुकराया ।।

दन्तों की चमचम तडित-जडित ,''ढलती है जब मुस्कानों में ।
तब स्वर्ग अवतरित धरती पर ,''''' मन देवों का भी भरमाया ।।

कर पाया भान न दृढ़ता का , '''पाहन का अवलोकन कर भी ।
है उसका ज्ञान अधूरा ही , ''''''''''''''उसने मन यों ही भटकाया ।।

चोटी पर बैठ कहे कागा , ''''''''''''''''''''''''जीता है मैंने चोटी को ।
यह कहे 'जसाला' अर्ध सत्य, '''''''पूरा सच समझ नहीं आया ।।

*****************सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

**दोहा छंद**

**दोहा छंद**
माँ दुर्गा मुझ पर बहे ,करुणा की रसधार ;
संकट सारे कट भगैं ,मन हो शुद्ध विचार । [१]

मात कृपा ऐसी करो ,करूँ में सबसे प्यार ;
दुर्गा चंडी कालिके  ,,,कीजै नाश विकार । [२]

मैं पापों की गाठरी ;सदा बुद्धि से हीन ;
अष्ट भुजी के नाम से ;तरा-तरा मैं दीन । [३]

धन लौलुप तो हो गए ; मति -भ्रम दुर्बल दीन ;
माँ दुर्गा के कोप से,,,,,,, होते सब श्रीहीन ।[४]

माता-माता सब कहे ,सब ऊपर की बात ;
मन से अम्बे को जपें ,,,,कैसे हो आघात । [५]

*******सुरेशपाल वर्मा  जसाला [दिल्ली]

**केसर की इस खेती में***[4 ]***[ओजपूर्ण]

***केसर की इस खेती में***[4 ]***[ओजपूर्ण]
*******************************
भारत माँ की खुशहाली का रंग जमाने आया हूँ
उसकी सोंधी माटी का मैं गीत सुनाने आया हूँ
सुसुप्त पड़ी हैं जो ज्वाला आग दिखाने आया हूँ
भारत माँ के शेरों  को मैं आज जगाने आया हूँ

भोले के तांडव के संग में डमरू आज बजा देंगे
माँ काली के खप्पर को भी खून-खून से भर देंगे
उठेंगी जो भी आँखे आज उनका पौरुष हर लेंगे
काश्मीर के हर दुश्मन को खाक-खाक में कर देंगे

माँ की ममता के कानों में स्वर्ण चढानें आया हूँ
आतंकी की सोच-तोड़ का व्यूह रचानें आया हूँ
गद्दारों की चाल-ढाल का तोड़ बताने आया हूँ
भारत माँ के चरणों में मैं शीश झुकानें आया हूँ
--------- [ क्रमशः -5 ]
 सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]
21 अप्रैल 2015

*केशर की इस खेती में [ओज की रचना ]***[३]


***केशर की इस खेती में [ओज की रचना ]***[३]
पाप-पुण्य की भाषा का मैं सार बताने आया हूँ !
तुम सभी के अंदर का मैं शेर जगाने आया हूँ !!
घोल रहे जो विष की हाला 
ड़ल झील की क्यारी में !
झेलम को जो नर्क बनाएँ 
उल्टी -सीधी बयानी में !
नफरत वाली हवा बहाएँ 
केसर वाली घाटी में !
मर्यादाएं उलट रहे हैं 
भारत माँ की माटी में !
अंगारों के शब्दों से मैं तुम्हे बताने आया हूँ !
तुम सभी के अंदर का मैं शेर जगाने आया हूँ !!
पिद्दी सी एक चींटी भी 
सिंह को आँख दिखाती है !
हम लोगों की रोटी भी 
उनके पेट में जाती है !
आपत्ति के हर हाल में
हम ही हाथ बढ़ाते हैं !
मानवता की खातिर हम 
उन पर जान लुटाते हैं !
देश-भक्ति रोम-रोम में बात बताने आया हूँ !
तुम सभी के अंदर का मैं शेर जगाने आया हूँ !!
 ;,,,[क्रमशः ४]
*****[सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली ]
______________ 2014 ,,,, मार्च 19

**केसर की इस खेती में*[२]****[ओजपूर्ण ]

******केसर की इस खेती में*[२]****[ओजपूर्ण ]

लोकतंत्र के चौराहे पर ,,,,,,,,,,आतंकी को फांसी दो
पनपाता है जो आतंक ,,,,,,उस आका को फांसी दो
संविधान के दुश्मनों को ,,,,,,,,चौराहों पर फांसी दो
उगल रहा है जो जहर ,,,,,उस मसरत को फांसी दो

पनप रहे हैं जो बिच्छू  ,,,,,अग्निकुंड में भस्म करो
आस्तीन के साँपों को ,,,,,,अग्निकुंड में भस्म करो
भारत माँ के हत्यारों को ,,,अग्निकुंड में भस्म करो
दानवता के हर पाप को ,,,,अग्निकुंड में भस्म करो
तिरंगे का अपमान करे जो ,अग्निकुंड में भस्म करो
************सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]
-----------------------------[17 मार्च 2015 ]





***केसर की इस खेती में***[१]--[ओजपूर्ण]

 ***केसर की इस खेती में***[१]--[ओजपूर्ण]
**************************
आज विधान है पंगु  क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
जहर उगलती भाषा क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
आजादी को गाली क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
पनप रही  गद्दारी क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
देशद्रोह की अग्नि क्यूँ
केसर की इस खेती में ;

आतंकी को बिरयानी क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
खून-खून का बैरी क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
माँ की आँखों  पानी क्यूँ
केसर की इस खेती में ;
बदलें आज समय को हम
केसर की इस खेती में
देशद्रोह की छाती तोड़ें
केसर की इस खेती में ;[ क्रमशः२ ]
*****************सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

*निराश आदमी *

****निराश आदमी ****
एक आदमी हताश
बड़ा ही निराश
आँखों में पानी
आत्महत्या करने की ठानी,
फिर सोचने लगा कैसे दूँ प्राण अपने
सोचते-सोचते उसे ध्यान आया-
जंगल में एक नरभक्षी आया',
मैं भी उसके पास जाऊंगा
उसके भूखे पेट का निवाला बन-
 संसार से मुक्ति पाउँगा ,
इसी उद्देश्य -
पहुंच गया  वो जंगल प्रदेश
सो रहा था शेर -
वृक्ष के नीचे लेट,
नहीं की देरी -
जा खींची पूँछ केसरी ,
आई दहाड़  बेसुरी-
अरे जा चला जा यहाँ से ,
क्यूँ मरता है मेरे हाथों से ,

आदमी बोला -
नहीं मैं नहीं जाऊंगा ,
तेरे भूखे पेट का निवाला बन -
संसार से मुक्ति पाउँगा,
शेर बोला -
अरे नादान  !
इतना तो मैं जभी समझ गया था
 जब तूने मुझे, सोते को जगाया था
वही आदमी खींच सकता है मेरी पूंछ -
जो चाहता है करना दुनिया से कूच ,
अरे बेवकूफ !
मैं शेर हूँ ,जंगल का राजा हूँ ,
राजा कभी भीख नहीं लेता ,
इसलिए तू जा
मुझे नहीं चाहिए दान -
तेरे जैसे कायर की जान,
अगर मैं कायर का मांस खाऊंगा
तो मैं भी कायर हो जाऊंगा -
फिर मैं जंगल का राजा-
कैसे रह पाऊँगा ?
******सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

  





'' कवितालोक रत्न सम्मान'


**''' कवितालोक रत्न सम्मान'''** एवं वीर-रस काव्य पाठ '''**
 दिनाँक 26 अप्रैल 2015 को हिसार (हरियाणा) साक्षी रहा ,,वहां की हवा ,खुशबू साक्षी रही ,,वहां का कण-कण साक्षी रहा ,,कवितालोक शतकीय महाकुम्भ के ''एक अनूठे इतिहास का ''
मुझे भी इस ऐतिहासिक अवसर  पर '''कवितालोक रत्न सम्मान''' के  साथ-साथ वीर-रस का  काव्य-पाठ  करने का भी सुअवसर मिला ,,, मुझ पर उड़ेले गए अथाह स्नेह के लिए,, हिसार की धरा और वहां की सुधि जनता का हृदय की गहराइयों से अभिनंदन एवं वंदन करता हूँ,,,,आदरणीय यह सब आपकी शुभकामनाओं का प्रतिफल है ,,,जी आपका हृदय से अभिनंदन ,,,आपको भी तो मिला है आपको भी बहुत-बहुत बधाई
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@@@@@,,हम सब की ओर से निम्न  सभी सफल  आयोजन कर्ताओं का हृदयस्पन्दित आभार एवं इन्हें अंतस से अभिनन्दन -पुष्प समर्पित -----
***श्री गुमनाम कवि जी [एडमिन कवितालोक]
***श्री तिलक जैन जी [संयोजक ;;सम्मान समारोह एवं अखिल भारतीय कवि सम्मेलन ,,हिसार]
***डा. शमीम शर्मा जी [मंच  संचालिका ]
***डा. चंद्रशेखर जी [मंच सह संचालक]
{{{{मुझे भी इस ऐतिहासिक भूमि पर ''' कवितालोक रत्न सम्मान''' । }}}}

*वो कवि कवि नहीं *

 ******वो कवि कवि नहीं ******
वो कवि कवि नहीं ,,जिसकी कलम में धार नहीं ;
वो कवि कवि नहीं ,करता जो बुराई पर वार नहीं ;
है यदि तरकस  में उसके,शब्द भेदी बाण भण्डार ;
तो उसके आगे,,,,,, टिके कोई तीर तलवार नहीं ।-------------[१]
***************************************
वो कवि कवि नहीं ,,,,,,,,,जिसकी कलम में धार नहीं ;
वो कवि कवि नहीं ,,,, जिसका वीरों से सरोकार नहीं ;
है यदि  उसके पास ,वीरों को सजदा करने वाले शब्द ;
तो उससे बढ़कर ,,,,,,,,,,,,वीरो का कोई सत्कार नहीं ।---------[२]
*******सुरेशपाल वर्मा 'जसाला'

** कुछ मुक्तक **

******** कुछ  मुक्तक **************

**********************************
उद्दण्डता के छन आज भी  भूल नहीं पाते हैं;
रुसवाई की नटखट जिद सा शूल नहीं पाते हैं ;
खिलकर कली कब फूल बनी ये गुत्थी उत्तरहीन  ;
मिलन-खिलन की मुस्कानों सा फूल नहीं पाते  हैं.। ----{१ }
 ************************************
आतंकी जमीं  पर,,,,,,, बारूद की खेती है ;
प्यार की फसल में भी, विष की ही रेती है ;
इंसानियत तार-तार,,, हकीकत भी रोती ;
दरिंदों के दिल की तो,, दरिंदगी चहेती है । --------------{२ }
***********************************
ईश्वर के इक रूप में है धूप का भी मान ;
मौसम के संभाग में है धूप की ही शान ;
धूप सुहानी मस्तानी कभी जिंदगानी है;
 धूप से ही सृष्टि में है सभी गुणों का भान।---------------{३}
**************************************
चार रंग में सिमटी दुनिया ,,,,,बाकी  इनका मेल है ;
पीला नीला लाल हरा से ,,,,बस बनता सारा खेल है ;
मेल करा दें इन रंगों का ,,,,,,,,,,बन जाते नव रंग हैं ;
बस प्यार से खिले ये दुनिया, बिना प्यार तो जेल है।----{४}
*****************सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

क्यूँ मन में उठ रहे अनेकों ज्वार अब ;

क्यूँ मन में उठ रहे अनेकों ज्वार अब ;
****************************
क्यूँ मन में उठ रहे अनेकों ज्वार अब ;
क्यूँ तन में चढ़ रहा तीव्रतम बुखार अब;
अवसर चूका है तुमने हुआ उनका अवसान है ;
लौटा न सकोगे तुम कभी मातृ-पितृ उधार अब ।
******सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

*****गाँव पर एक मुक्तक *****


*****गाँव पर एक मुक्तक *****

मेरे मन की आहों को,,,,,,  जहाँ विश्राम मिले ;
मेरे तन की पीड़ा  को,,,,,,  जहाँ आराम मिले ;
ऐसा है गाँव सजीला ,,,,,,,,हरे कष्ट सभी का ;
अपनेपन की सरिता तो ,वहाँ अविराम मिले।
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]