गुरुवार, 21 मई 2015

***हमने उसमें नाज़ सा देखा***


हमने उसमें नाज़ सा देखा;
दम्भीपन का राज सा देखा ।

चुनरी उड़ती देख रंगीली ;
उसको उड़ता बाज़ सा देखा ।

वो बेढंगा बेसलीका है  ;
तो भी लिपटा  लाज़ सा देखा ।

रहता कोसों दूर बेचारा ;
सम्बन्ध बटन काज सा देखा ।

सीधा -सादा ना अहंकारी ;
पर वो सर का ताज सा देखा ।

गुरबत में भी हार ना मानें  ;
नासाजी में साज़ सा देखा ।

पंथ जसाला लेय सुन्हेरा ;
बेमानी पे  गाज़ सा देखा ।
****सुरेशपाल  वर्मा जसाला [दिल्ली]

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