हमने उसमें नाज़ सा देखा;
दम्भीपन का राज सा देखा ।
चुनरी उड़ती देख रंगीली ;
उसको उड़ता बाज़ सा देखा ।
वो बेढंगा बेसलीका है ;
तो भी लिपटा लाज़ सा देखा ।
रहता कोसों दूर बेचारा ;
सम्बन्ध बटन काज सा देखा ।
सीधा -सादा ना अहंकारी ;
पर वो सर का ताज सा देखा ।
गुरबत में भी हार ना मानें ;
नासाजी में साज़ सा देखा ।
पंथ जसाला लेय सुन्हेरा ;
बेमानी पे गाज़ सा देखा ।
****सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें