सोमवार, 11 मई 2015

क्यूँ मन में उठ रहे अनेकों ज्वार अब ;

क्यूँ मन में उठ रहे अनेकों ज्वार अब ;
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क्यूँ मन में उठ रहे अनेकों ज्वार अब ;
क्यूँ तन में चढ़ रहा तीव्रतम बुखार अब;
अवसर चूका है तुमने हुआ उनका अवसान है ;
लौटा न सकोगे तुम कभी मातृ-पितृ उधार अब ।
******सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

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