रविवार, 14 अक्तूबर 2018

*******संस्मरण*******

***संस्मरण  (1) : प्रकृति की गोद में मिजोरम***
भारत के उत्तर-पूर्व में पर्वतराज हिमालय की सुन्दर सुरम्य पर्वत मालाओं से आच्छादित भव्यता को, वहां की घाटियों की आकर्षकता और विभिन्न प्रकार के हरे-भरे ऊंचे-ऊंचे वृक्ष और भी मनोरम और रम्य बना देते हैं।
उत्तर-पूर्व के सात छोटे- छोटे रमणीय प्रदेशों की श्रृंखला में अपनी मनोहारी प्रकृति का धनी एक प्रदेश मिजोरम भी वहीं पर है। वहां जाने का और वहां की संस्कृति से कुछ रुबरु होने का, वहां के लोगों से आत्मीयता से मिलने का एक सुन्दर और सुखद अवसर सौभाग्य से हमें भी प्राप्त हुआ। यहां के लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा मिजो कहलाती है, लेकिन इनकी अपनी कोई लिपि न होने के कारण ये इसे रोमन में लिखते हैं।
नवम्बर 2017 में 'नागरी लिपि परिषद' राजघाट, नई दिल्ली के तत्वावधान में नागरी लिपि प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से 'हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान' दुरत्लोंग, आइजोल में कार्यक्रम रखा गया था। इसमें भाग लेने के लिए दिल्ली और आसपास के सत्रह प्रतिष्ठित कवि, साहित्यकार, पत्रकार और शिक्षाविद जो नागरी लिपि परिषद के सम्मानित पदाधिकारी या सदस्य भी हैं, यथा श्री परमानन्द पांचाल (अध्यक्ष : नागरी लिपि परिषद ), डॉ हरिसिंह पाल ( महामंत्री : नागरी लिपि परिषद ) , श्री उमेश चन्द त्यागी ( कोषाध्यक्ष : नागरी लिपि परिषद एवं प्रबंधक राजधानी पब्लिक स्कूल, दिल्ली), श्री विनोद बब्बर (संपादक : राष्ट्र किंकर पत्रिका, दिल्ली), श्री ब्रजपाल सिंह सन्त (हास्य एवं ओज कवि), श्री राजकुमार सचान 'होरी'(कवि एवं साहित्यकार और शिक्षाविद, गाजियाबाद), श्री रामकिशोर उपाध्याय (अध्यक्ष: युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच पंजी दिल्ली), श्री संतोष कुमार शर्मा (बाबा कानपुरी ,कवि एवं साहित्यकार) श्री ओमप्रकाश शुक्ल (महामंत्री: युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच पंजी दिल्ली), डॉ एम पी एस दांगी (सेवानिवृत्त उप शिक्षा अधिकारी दिल्ली), डॉ चिरंजीलाल 'लाल' (कवि एवं साहित्यकार), श्रीमती पुष्पा पाल (साहित्यकार), श्रीमती सविता त्यागी (कोषाध्यक्ष: राजधानी पब्लिक स्कूल दिल्ली), श्री छतरपाल सिंह जी (सेवानिवृत्त शिक्षक), श्री महावीर प्रसाद जी, श्री अंकित कुमार ( सहायक नागरी लिपि परिषद), एवं अक्षित कुमार  (विद्यार्थी) राष्ट्र हित में स्वयं के वहन पर हवाई यात्रा से वहां पहुंचे।
हम 01 नवम्वर 2017 को इंदिरा गांधी हवाई अड्डा दिल्ली से हवाई यात्रा द्वारा गुवहाटी होते हुए आइजोल पहुंचे। फिर वहां से 'हिंदी प्रशिक्षण संस्थान' की गाड़ी से सुंदर सुरम्य मिजोरम के उत्तुंग शिखरों के प्राकृतिक दृश्यों तथा गहरी घाटियों की मनभावन सुन्दरता को निहारते हुए और प्राणवायु आॅक्सीजन से भरपूर शुद्ध शीतल वायु के सेवन का आनंद लेते हुए, हम दुरत्लोंग में उच्च शिखर पर स्थित 'हिंदी प्रशिक्षण संस्थान' में पहुंचे।
स्वादिष्ट एवं पौष्टिक रात्रिभोज के पश्चात सभी रात्रि विश्राम के लिए अपने- अपने बिस्तर पर चले गए।
02 नवम्बर 2017 को प्रातःकालीन शानदार मनोहारी दृश्य देखकर मन वाह - वाह कह उठा । अद्भुत , अद्भुत और बस अद्भुत दृश्य था वह । नीचे सम्पूर्ण घाटी सुन्दर मखमली बादलों को अपने आगोश में समेटे हुए थी, जिसे देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो श्वेत बर्फ खण्डों से भरी कोई विशाल सरिता कुछ समय के लिए मौन धारण कर ठहर सी गई थी। शनै- शनै दिनकर की स्वर्णिम रश्मियों की अठखेलियों के साथ-साथ बादलों का विलुप्त हो जाना और फिर रंगारंग सुरम्य हरित परिदृश्य में परिवर्तित हो जाना, आह! सब कुछ चित्ताकर्षक और मनभावन वास्तविकता से परिपूर्ण था।
संस्थान के सभागार में मुख्य अतिथि के रूप में मिजोरम के राज्यपाल आदरणीय निर्भय शर्मा
जी (पूर्व लेफ़्टिनेंट जनरल), आदरणीय परमानन्द पांचाल जी (अध्यक्ष नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली), आदरणीय लालरोसांगा जी (उप निदेशक उच्च एवं तकनीकी विभाग मिजोरम सरकार) प्रो.सुशील कुमार शर्मा जी (आचार्य व हिन्दी विभागाध्यक्ष; मिजोरम विश्वविद्यालय) और संस्थान की प्राचार्या श्रीमती लुयिस हाउह्नर जी तथा अन्य गणमान्य विशिष्ट अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई।
कुछेक प्रवक्ताओं द्वारा नागरी लिपि की वैज्ञानिकता और विशिष्टता पर समुचित व ग्राह्य व्याख्यान प्रस्तुत किए गए। आदरणीय राज्यपाल महोदय और मंचासित अतिथियों ने नागरी लिपि पत्रिका, मेरा नव काव्यसंग्रह "अंगार और फुहार", ओमप्रकाश शुक्ल जी का काव्य संग्रह "गांधी और उनके बाद" तथा अन्य पुस्तकों का अपने कर कमलों से विमोचन किया। राज्यपाल महोदय ने नागरी लिपि के साथ- साथ हिन्दी की उपयोगिता पर भी विस्तृत प्रकाश डाला।
दिनभर नागरी लिपि की उपयोगिता एवं महत्ता पर अनेक विद्वानों ने सारगर्भित और ज्ञानप्रद वक्तव्य प्रस्तुत किये । स्थानीय शिक्षणार्थियों के द्वारा प्रस्तुत रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम से आयोजन में चार चांद लग गए थे।
संध्या काल में आदरणीय राज्यपाल के निवास राजभवन में सुंदर कवि सम्मेलन में स्थानीय एवं बाह्य कवियों ने अपने-अपने सरस काव्यपाठ से खूब वाह- वाही लूटी, तालियां बटोरी। सभी कवियों और साहित्यकारों का शाॅल द्वारा सम्मान किया गया। उसके उपरान्त वहीं पर सभी ने स्वादिष्ट रात्रिभोज का आनन्द लिया। रात्रि में जगमग पर्वतीय घाटियों की सुन्दर आभा का अवलोकन करते हुए लगभग ग्यारह बजे हम हिंदी प्रशिक्षण संस्थान को वापस लौटे।
अगले दिन 03 नवम्बर 2017 को सम्मान्य विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति में मध्याह्न तक नागरी लिपि पर विभिन्न कार्यक्रम एवं सुन्दर व्याख्यान प्रस्तुत किये गये। स्थानीय प्रबुद्ध वक्ताओं ने अपने वक्तव्यों में हिन्दी की उपयोगिता और आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने बताया कि मिजोरम और वहां के लोगों की उन्नति के लिए राष्ट्रीय सम्पर्क के माध्यम के रूप में नागरी लिपि तथा हिन्दी का ज्ञान अनिवार्य है। मध्याह्न के बाद सुन्दर गीत, संगीत, लोक नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मनोहार प्रस्तुति के साथ इस यादगार कार्यक्रम का शानदार समापन किया गया।
04 नवम्बर 2017 को स्थानीय भ्रमण कार्यक्रम रखा गया। ऊंचे-नीचे पर्वतीय मार्गों से गुजरते हुए, एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर होते हुए, सुन्दर मोहक दृश्यों का, झमाझम झरनों का, आॅक्सीजन उगलते पेड़ पौधों का, मंद-मंद पवन के झोंको का आनंद लेते हुए हम मिजो पारम्परिक कला और संस्कृति की धरोहर के रूप में संग्रहीत "जोखुआ फाल्कॉन" पहुंचे। उस ऐतिहासिक स्थल को देखकर हमें पुरातन काल में होने और सैर करने का ऐसा अद्भुत आभास हो रहा था। मानो कि हम कालक्रम में सचमुच पीछे पहुंच गए थे।
वहीं पर हम सबने हरी-हरी घास पर बैठकर भोजन का आनंद लिया जो 'हिंदी प्रशिक्षण संस्थान' की ओर से ही पैक करके लाया गया था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि भोजन तैयार करने में, परोसने में और खिलाने में जो प्यार था,जो आतिथ्य - सत्कार था , जो अपनापन था वो सदैव दिल की गहराइयों में बसा रहेगा।
इसके उपरांत हम वहां के प्रसिद्ध चर्च 'सालोमन टेम्पल' को देखने गए। चर्च के बाहर का सुन्दर दृश्य देख मन प्रफुल्लित हो गया। चर्च के अन्दर सुन्दर विशाल प्रार्थना भवन में अपने ईश्वर को नमन और स्मरण करने के बाद हम बाहर निकले । फिर इसके चारों ओर विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे कृत्रिम पुष्पों और लताओं के द्वारा सजाए गए सुन्दर कृत्रिम दृश्यों की मनोहर झांकियां देखकर हमें अत्यंत आनंद की अनुभूति हो रही थी। हर व्यक्ति हर झांकी के साथ मोबाइल से अपने यादगार फोटो खिंचवा रहा था।
चर्च के बाद हम मिजोरम विश्वविद्यालय के लिए चल पड़े। रात हो चुकी थी, रास्ते में अचानक गाड़ी खराब हो गई, सौभाग्य से तभी विश्वविद्यालय की गाड़ी वहां से गुजर रही थी, उसे रोक कर हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ सुशील कुमार शर्मा जी, जिनके निमंत्रण पर हम रात्रिभोज के लिए जा रहे थे, से सम्पर्क किया गया। तब उस गाड़ी में बैठकर हम विश्वविद्यालय पहुंचे। उनकेे द्वारा सुन्दर स्वादिष्ट भोजन को प्रेम पूर्वक ग्रहण करने के उपरांत लगभग ग्यारह बजे हम अपने विश्राम-स्थल हिंदी प्रशिक्षण संस्थान पहुंचे।
इस अविस्मरणीय यात्रा में सुखद अनुभूति के रंग और प्यार की मधुर सुगंध से सिक्त करने में यूं तो वहां के हर व्यक्ति का महत्वपूर्ण योगदान है, जिसके लिए हम सभी के हृदय से आभारी हैं। किन्तु फिर भी कार्यक्रम के लिए अपना कीमती समय प्रदान करने के लिए आदरणीय निर्भय शर्मा जी राज्यपाल मिजोरम , श्री सुशील कुमार शर्मा जी हिन्दी विभागाध्यक्ष मिजोरम विश्वविद्यालय , श्रीमती लुयिस हाउह्नर संस्थान की प्राचार्या का ससम्मान आभार व्यक्त करते हैं और सदैव प्रेमपूर्वक सहयोग में तत्पर आर. ललत्लाहमुआनी (प्रवक्ता), जुडी ललएंगवरी (प्रवक्ता), डॉ कमलाबती टेलम (प्रवक्ता), मौनी रेंजा (प्रवक्ता), एलिज़ाबेथ ह्णम्ते (प्रवक्ता), पंडित एके रंजीत (प्रवक्ता), रम्ते जहथांग (प्रशिक्षणार्थी), जेड. ललरमथरा (प्रशिक्षणार्थी), विनोद गुरुंग (प्रशिक्षणार्थी), सुशान ललरमपारी (प्रशिक्षणार्थी), आदि का हृदय की गहराइयों में धन्यवाद एवं आभार व्यक्त करते हैं।
इस यादगार यात्रा के लिए हम स्वयं को धन्य और सौभाग्यशाली समझते हैं। हम विश्वास करते हैं कि एक दिन भारत के सभी राज्य राष्ट्रहित में अपनी प्रगति और उन्नति के साथ-साथ समानता, कार्य के व्यापक अवसरों की खोज, व्यापार की व्यापकता तथा एक-दूसरे की कला और संस्कृति को जानने की दृष्टि से नागरी लिपि के साथ जुड़ ही जायेंगे , तभी नागरी लिपि का महान उद्देश्य "एक भारत एक लिपि" पूर्ण होगा।
*******सुरेशपाल वर्मा जसाला

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

(2)
**मुगल-ए-आजम**
"मुगल-ए-आज़म" फिल्म की सीधी-सच्ची मंचीय प्रस्तुति जीवन की अविस्मरणीय धरोहर बनकर सदा-सदा के लिए मानस पटल पर अंकित हो गई। इस फिल्म का मंचन अद्भुत , शानदार, बस यूं कहूं कि बताने में शब्द भी बौने पड़ रहे हैं ।
क्या अंदाज,क्या ड्रेस, क्या डायलोग, क्या दृश्य, क्या सज्जा, क्या कल्पना, क्या कोरियोग्राफी, क्या प्रस्तुति, सब एक दम सुनियोजित व प्रभावशाली, आधुनिक तकनीक से परिपूर्ण । सचमुच ऐसा अद्भुत और सुन्दर नाटकीय मंचन और प्रदर्शन कभी नहीं देखा।
शिक्षा विभाग दिल्ली के आदेशानुसार 20 सितम्बर 2017 को प्रत्येक विद्यालय से, जहां छात्र संख्या एक हजार से कम है एक अध्यापक और जहां छात्र संख्या एक हजार से अधिक है वहां से दो अध्यापकों को सायं पांच बजे विद्यालय से जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली के लिए जाना था।
हमारे विद्यालय मानसरोवर पार्क नं-1 शाहदरा से मैं और मेरे अध्यापक साथी विवेक कुमार गर्ग, दोनों परिचय पत्र सहित छ: बजकर चालीस मिनट पर जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम पहुंच गए थे। बाहर काउंटर पर ही परिचय पत्र देकर हमें प्रवेश- टिकट मिल गये थे। थोड़ी ही देर में सुन्दर शानदार लाल कार्पेट से सुसज्जित हाॅल खचाखच भर चुका था। शिक्षकों की इस यादगार शाम को चार चांद लगाने के लिए दिल्ली के शिक्षा मंत्री श्री मनीष सिसोदिया जी भी वहां उपस्थित हो गए थे।
लगभग 7 बजे सांय उत्सुकता के वातावरण में 'मुगल-ए-आजम' फिल्म का मंचन प्रारंभ हुआ।
अद्भुत प्रकाश-बिम्बों की चमक और वाद्य-यंत्रों की सुमधुर ध्वनि के संयोग से तथा एक प्रबुद्ध उद्घोषक की शानदार और प्रभावशाली उद्घोषणा से शो का मोहक मंचन प्रारम्भ हुआ।
ऐतिहासिक दृश्यों को दर्शाने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग कर पर्दों पर दृश्य-श्रव्य चित्रों के साथ पहले से ही तैयार दृश्य-सामग्री को यथा स्थल पर संयोजित करना, लालकिले के दृश्य को प्रस्तुत करने के लिए विशाल खम्बों को हॉल की छत से नीचे लाकर किले की शानदार सार्थकता पेश करना, सचमुच सब कुछ सराहनीय था।
यथार्थ में कलाकारों द्वारा फिल्म के सीधे मंचन की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम ही होगी। लाजवाब वेशभूषा, सुन्दर श्रृंगार, प्रभावपूर्ण सज्जा, कलाकारों द्वारा सीधे-सच्चे डायलॉग , अकबर, सलीम, जोधा, अनारकली सभी के किरदार कलाकारों का मोहक अभिनय, आकर्षक अदाकारी, सुमधुर गीत-संगीत के साथ कला और संस्कृति का जीता-जागता साक्ष्य प्रस्तुत कर निदेशक ने ईमानदारी का पूर्ण परिचय दिया।
यह अविस्मरणीय नाटकीय मंचन सचमुच अद्भुत और प्रशंसनीय था, जो मुगल-ए-आजम फिल्म से भी सुन्दर और प्रभावशाली था। यह यादगार नाटक मन-मस्तिष्क पर सदैव अंकित रहेगा।
यह सुअवसर प्रदान करने के लिए शिक्षा विभाग दिल्ली और शिक्षा मंत्री आदरणीय मनीष सिसौदिया जी का हृदयतल से आभार।

********************************************
(३)
***अविस्मरणीय अगरतला ***

4 अक्टूबर 2018 को प्रातः 3:00 बजे कैब से चलकर हम 4:00 बजे इंदिरा गांधी हवाई अड्डे टी 2 पर पहुंचे। हमारी फ्लाइट प्रातः 5 बजकर 55 मिनट पर थी। 5:10 पर हम हवाई जहाज में बैठने की प्रक्रिया में शामिल हुए। हमारा हवाई जहाज, फ्लाइट नंबर 6E 861 (A320) निर्धारित समय पर उड़ान भर चुका था। आसमान की ऊंचाइयों को छूता हुआ हमारा हवाई जहाज लगभग ढाई घंटे की यात्रा के पश्चात कोलकाता के सुभाष चन्द्र बोस हवाई अड्डे पर पहुंचा। वहां पर कुछ यात्री उतरे और कुछ नये यात्री अगरतला के लिए हवाई जहाज में चढ़े। फिर हमारा हवाई जहाज दुबारा उड़कर बादलों के मखमली झुंडो को चीरता हुआ, हवा से बातें करता हुआ, शान के साथ आगे बढ़ा। 09 बजकर 50 मिनट पर हमारा हवाई जहाज अपने गंतव्य त्रिपुरा की राजधानी अगरतला की हवाई पट्टी पर उतर चुका था, यह था बीर बिक्रम सिंह हवाई अड्डा।
अपना-अपना सामान लेकर त्रिपुरा विश्वविद्यालय से आई बस में सामान रखकर, हम लगभग 11:45 पर विश्वविद्यालय, सूर्यमणि नगर में पहुंच गए थे, नये भवन में सभी को कक्ष दिये गये। अपने-अपने कमरों में जाकर, नहाना-धोना कर, कैंटीन से खाना खाकर, विश्राम करने लगे। नागरी लिपि परिषद के, होने वाले दो दिवसीय इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न 17 राज्यों से लगभग 60 प्रतिभागियों ने भाग लिया। जिसमें कवि, साहित्यकार, विभिन्न पदों पर काम करने वाले उच्च स्तरीय प्रतिभागी एवं गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
5 अक्टूबर को प्रातः 10:00 बजे 'नागरी लिपि परिषद' व 'त्रिपुरा विश्वविद्यालय' के संयुक्त तत्वाधान में और गेल तथा ओएनजीसी के द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम में नागरी लिपि परिषद के अध्यक्ष श्री परमानंद पांचाल, मुख्य अतिथि श्री सुदीप रॉय बर्मन (स्वास्थ्य मंत्री त्रिपुरा सरकार ), डॉ मिलन रानी जमातिया (हिन्दी विभागाध्यक्ष), डॉ जय कौशल (सहा प्रो.), डॉ हरिसिंह पाल नागरी लिपि के महासचिव और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में "नागरी लिपि की उपयोगिता" पर तीन सत्रों के कार्यक्रम में गहन चर्चा हुई , जिसमें अनेकों विद्वानों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए। कुछ लोगों ने हिंदी की राष्ट्रव्यापी महत्ता पर भी प्रकाश डाला। फिर चतुर्थ सत्र में विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा रंगारंग, मनोहारी और उत्कृष्ट सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। छात्रों द्वारा शानदार एवं अनुशासित कार्यक्रम को डॉ जय कौशल के कुशल संचालन में और डॉ मिलन रानी जमातिया के संयोजन में फूलों सी खिलखिलाहट मिली। इस यादगार कार्यक्रम को देखकर सभी लोग आनंदित, आह्लादित और प्रफुल्लित हो गए।
06 अक्टूबर की सुबह मेरे पास ओमप्रकाश शुक्ल जी का फोन आया कि उपाध्याय जी को चोट लग गई।
 मैं अपने कमरे से तुरंत भागा, जाकर देखा, रामकिशोर उपाध्याय जी बैड पर पड़े हैं।  हाल-चाल पूछा तो उन्होंने बताया कमर में बहुत दर्द है। स्थानीय कर्मचारियों और प्रोफेसर डॉ जय कौशल के माध्यम से विश्वविद्यालय के अस्पताल के डॉक्टर से सम्पर्क किया गया जो थोड़ी देर में पहूंचने वाले थे। कैसे क्या हुआ ?, पूछने पर मालूम हुआ कि बाथरूम के चिकने फर्श पर पैर फिसल जाने से रामकिशोर जी धड़ाम से वहीं गिर गये थे।
 कमर की चोट को नाजुक मानते हुए मैंने प्रारंभिक जांच के रूप में हाथ पैर हिलाने के लिए कहा तो उन्होंने हाथ पैर हिला दिये, मुझे गंभीर चोट न होने का आभास हो गया। फिर भी रीढ़ की हड्डी के बारे में आश्वस्त होने के लिए मैंने सहारा देकर उन्हें बैठाया,, और धीरे से सहारा देकर उन्हें खड़ा भी किया, अब मैं पूर्ण रूप से चिंता विहीन था। फिर मैंने सावधानी पूर्वक उनको बैड पर लिटाया और डॉ ब्रजपाल सिंह संत जी से वोलिनी लाकर उपाध्याय जी की पीठ पर लगाई। इससे उन्हें कुछ राहत मिली।
  कुछ समय बाद डॉक्टर भी पहुंच गए, उन्होंने भी जांच- पड़ताल की और वोलिनी लगाने के लिए कहा तथा कुछ दवाइयां अस्पताल से देने के लिए कहा और आराम करने की सलाह दी। ओमप्रकाश जी अस्पताल से दवाइयां लेकर आए।
इसी बीच हमारे साथ डा. बृजपाल सिंह संत की धर्मपत्नी श्रीमती ओमकारी देवी का पर्स खो जाने का शोर मच गया, इधर-उधर ढूंढा गया, जहां से सामान खरीदा उन दुकानों पर भी पूछताछ की गई, इसी बीच किसी लड़की को वह पर्स मिल गया, ईमानदारी का परिचय देते हुए, उसने पुजारी को पर्स सौंप दिया, पुजारी लोगों से पूछताछ कर रहा था, तभी हमारे साथी ओमप्रकाश शुक्ल ने बताया कि एक पर्स पुजारी के पास है, पुजारी के पास जाकर पर्स की पहचान बताई गई और बताया गया कि पर्स में ₹8500 हैं, पुजारी ने चेक किया, और पर्स दे दिया, पर्स में ही एक सोने की अंगूठी थी, जिसकी कीमत लगभग 13- 14 हजार रुपये थी। इस अप्रत्याशित समस्या से छुटकारा पाकर मां को धन्यवाद देकर सभी बस में बैठ गये।
इस बार बस तेजी से दौडती हुईं, नीर महल उदयपुर -अगरतला की ओर चल पड़ी। यहां पर प्रति सवारी ₹30 का टिकट था, ₹900 में 30 टिकट खरीदे गए , फिर हम स्टीमर में बैठकर नीर महल की और बढ़े, अद्भुत नजारा था चारों तरफ दूर-दूर तक पानी ही पानी और उसके बीच में दूर एक महल दिखाई दे रहा था 10/12 मिनट की यात्रा के बाद हम नीर महल पहुंचे वहां जाकर फिर ₹10 प्रति व्यक्ति की दर से ₹300 में 30 टिकट खरीदें, महल में अंदर घुसने पर नजारा बड़ा ही सुंदर, सुनियोजित और मनभावन था, सभी महल की प्रशंसा कर रहे थे, आनंद ले रहे थे, फोटो खिंचवा रहे थे, रात हो चुकी थी, लाइटें जल चुकी थी, प्रकाश बिम्बों के बीच जगमगाता महल, बड़ा ही आकर्षक और सुकोमलता का जीता जागता भव्य स्वरूप था, सब उसकी भव्यता के कसीदे पढ़ रहे थे।
सबको बाहर निकलने का निर्देश दे दिया गया, सभी बाहर निकल गए और स्टीमर की प्रतीक्षा करने लगे, कुछ देर बाद खाली स्टीमर आया, उसमें सब सवार हो गए और पानी के विशाल सरोवर से बाहर आ गये, अपनी बस में बैठ कर विश्वविद्यालय के प्रांगण में पहुंच गए।
भ्रमण के समय हमने पाया कि यहां के लोग हिंदी बोलते हैं, समझते हैं, किंतु लेखन में नागरी लिपि का प्रयोग नहीं करते, हमारा यही प्रयास है कि वे नागरी लिपि का प्रयोग करें, इससे अखिल भारतीय स्तर पर उन्हें पहचान मिलेगी, रोजगार के अवसर मिलेंगे और फिर त्रिपुरावासियों का मंगल ही मंगल होगा।
हमने यह भी देखा की आने वाले दशहरा के सुंदर अवसर को उत्कृष्टता प्रदान करने के लिए जगह-जगह बड़े-बड़े पंडाल सजाए जा रहे थे, जिनमें मां दुर्गा की सुंदर आकर्षक मूर्तियों के साथ शानदार झांकियां प्रस्तुत की जा सके। इससे पता चलता है कि उन लोगों में मां काली के प्रति, मां दुर्गा के प्रति कितना स्नेह और कितनी श्रद्धा है।
8 अक्तूबर को सभी लोग नाश्ता कर हवाई अड्डे की ओर निकल पड़े, 9:00 बजे हम अगरतला हवाई अड्डे पर पहुंच गए थे,
कुछ सवारी 10:20 बजे की उड़ान से कोलकाता के रास्ते दिल्ली के लिए निकल पड़ी, और हम 6 सवारी पहले 6E 438(A420) फ्लाइट से 11:15 बजे चलकर 2 बजे चेन्नई एयरपोर्ट पहुंचे। उसके बाद दूसरी फ्लाइट 6E 2698(A320) से 3:15
पर चलकर सांय 6:15 बजे दिल्ली हवाई अड्डे पहुंचे और फिर वहां से कैब द्वारा अपने- अपने घर की ओर रवाना हो गए।
यह यात्रा एक अविस्मरणीय पलों का , मन-मस्तिष्क पर अंकन बनकर यादगार चित्रण हो गई।
इस प्रकार नागरी लिपि परिषद द्वारा त्रिपुरा की राजधानी में एक शानदार आगाज हुआ, जो हमेशा- हमेशा याद किया जाएगा। 

रविवार, 22 मई 2016

***हम तो कबूतर शांति पथ के*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

***हम तो कबूतर शांति पथ के***
[मुहावरों का प्रयोग]
****************************************
हम तो कबूतर शांति पथ के ,क्यूँ उल्लू हमको घूर रहे।
मानवता है धर्म हमारा , वो मानवता से दूर रहे।।

हर बार दिया मौका हमने ,बस उसकी टेढ़ी पूंछ रही !
बातों से दुष्ट नहीं माना ,तो रण में लातें खूब दई !!
गिड़गिड़ाया पड़ा कदमों में ,सारे ही नखरे चूर रहे !
हम तो कबूतर शांति पथ के ,क्यूँ उल्लू हमको घूर रहे !! [१]

हमदर्दी की गोली से वो ,अक्सर बदहज़मी पाता है !
अस्त्र-शस्त्र की होड़ करे तो , बस मुँह की ही वो खाता है !!
पिट-पिट कर भी फुंकार भरे ,वह लज्जित भी भरपूर रहे !
हम तो कबूतर शांति पथ के ,क्यूँ उल्लू हमको घूर रहे !![२]

दुर्गन्ध विकारों की मन में , नीयत खोटी, चोटी पर है !
मक्कारी का कुनबा जोड़ा ,धरी नींव गद्दारी पर है !!
आतंकी रक्त शिराओं में , विश्व-जन के लिये क्रूर रहे !
हम तो कबूतर शांति पथ के ,क्यूँ उल्लू हमको घूर रहे !! [३]

हर-बार उमड़ कर आता वो,पर तड़फ-तड़फ मर जाता ! है
भारत के शेरों का गर्जन, बस नानी याद दिलाता है !!
खण्ड-खण्ड कर दो तन उनका ,जो मद में अक्सर चूर रहे !
हम तो कबूतर शांति पथ के ,क्यूँ उल्लू हमको घूर रहे !![४]

नापाक इरादे हैं उसके ,वो प्राणी हित में  है खतरा !
मिट्टी में उसको दफना दो ,कर दो निष्क्रिय कतरा-कतरा !!
कुचल धरो फन उसका ऐसा ,फिर न वो कभी मगरूर रहे !
हम तो कबूतर शांति पथ के ,क्यूँ उल्लू हमको घूर रहे  !![५]

हम तो पुजारी शांति के हैं , मत समझो तुम कमजोर हमें !
जब भी सिर आ पडे  मुसीबत, तो आता पाना छोर हमें !!
नौ दो ग्यारह हो जा दुश्मन , बस ऐसा सबक जरूर रहे !
हम तो कबूतर शांति पथ के ,क्यूँ उल्लू हमको घूर रहे !![६]

खून पसीना एक करें हम ,तब ये खुशहाली आती है !
वो आतंकी के साथ खड़ा ,करतूतें नरक डुबाती हैं !!
मर्यादायें जो भूल चुका , वो  सदा-सदा मजबूर रहे !
हम तो कबूतर शांति पथ के ,क्यूँ उल्लू हमको घूर रहे !![७]

चरित, धर्म औ शर्म सभी को,वो सच्च तिलांजलि दे बैठा !
मानवता के आभूषण ये ,कभी भाव हमारा न ऐंठा !!
तूती बोल रही भारत की ,ये देश सदा मशहूर रहे !
हम तो कबूतर शांति पथ के ,क्यूँ उल्लू हमको घूर रहे !![८]

फलदार सदा झुककर रहते ,निकृष्ट ही सदा अकड़ते हैं !
गुणवान सदा झंडा गाड़ें ,गुणहीन तो बस गरजते  हैं !!
छोड़ चलो अरिताई सारी ,बस प्रेम भरा दस्तूर रहे !
हम तो कबूतर शांति पथ के ,क्यूँ उल्लू हमको घूर रहे  !![९]

 

  *******सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)    , 




गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

वर्ण-पिरामिड (शीर्षक = काँटे / शूल)

वर्ण-पिरामिड
शीर्षक = काँटे / शूल
ये
शूल
बबूल
दंभ मूल
विषाक्त चूल
निकृष्ट उसूल
चीर-चीर दुकूल (१)
ये
काँटे
निर्भाव
चलें दाव
घायल पाँव
तडफते घाव
छिन्न-भिन्न संभाव (२)
*******सुरेशपाल वर्मा जसाला

*****वर्ण-पिरामिड*****


शनिवार, 16 जनवरी 2016

विनाशी मानव

*******सचित्र  रचना*******
@@@@@ ==विनाशी मानव== @@@@@
अणु परमाणु का खेल खेलता ,खुद झंझट में फँसता
अस्त्र-शस्त्र की होड़ में पड़कर ,सर्वनाश पर हँसता
एकल जीवन धारी धरती को ,लील रहा तू पलपल
क्यूँ सन्देहों से भ्रमित होकर ,जग पर अंकुश कसता

*******सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

रविवार, 10 जनवरी 2016

*मेरा बचपन ( जब मैं एक वर्ष का था )*

*मेरा बचपन ( जब मैं एक वर्ष का था )*
*************************
बचपन याद करो अपना
है जो भूला ,,,,सा सपना
सच्च प्यार सभी करें थे
सीखे हम माँ-माँ जपना
*******सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

गुरुवार, 7 जनवरी 2016

***एक सिंहालोकनी दोहा मुक्तक*** (नववर्ष की शुभकामनायें)


***एक सिंहालोकनी दोहा  मुक्तक***
***नववर्ष की शुभकामनायें ***

हर्ष भरा नव वर्ष हो, खुशियों की बौछार
बौछार प्रभु कृपा रहे, सद्जन प्रेम अपार
सद्जन प्रेम अपार से ,जीवन सरस वसंत
वसंत मधुमय भाव दे, हर्षित हो परिवार
 


*****सुरेशपाल वर्मा जसाला