शनिवार, 16 जनवरी 2016

विनाशी मानव

*******सचित्र  रचना*******
@@@@@ ==विनाशी मानव== @@@@@
अणु परमाणु का खेल खेलता ,खुद झंझट में फँसता
अस्त्र-शस्त्र की होड़ में पड़कर ,सर्वनाश पर हँसता
एकल जीवन धारी धरती को ,लील रहा तू पलपल
क्यूँ सन्देहों से भ्रमित होकर ,जग पर अंकुश कसता

*******सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

रविवार, 10 जनवरी 2016

*मेरा बचपन ( जब मैं एक वर्ष का था )*

*मेरा बचपन ( जब मैं एक वर्ष का था )*
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बचपन याद करो अपना
है जो भूला ,,,,सा सपना
सच्च प्यार सभी करें थे
सीखे हम माँ-माँ जपना
*******सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

गुरुवार, 7 जनवरी 2016

***एक सिंहालोकनी दोहा मुक्तक*** (नववर्ष की शुभकामनायें)


***एक सिंहालोकनी दोहा  मुक्तक***
***नववर्ष की शुभकामनायें ***

हर्ष भरा नव वर्ष हो, खुशियों की बौछार
बौछार प्रभु कृपा रहे, सद्जन प्रेम अपार
सद्जन प्रेम अपार से ,जीवन सरस वसंत
वसंत मधुमय भाव दे, हर्षित हो परिवार
 


*****सुरेशपाल वर्मा जसाला

*** वर्ण पिरामिड रचना ***

*** वर्ण पिरामिड रचना ***
ये
वीर
सैनिक-
बलिदानी !
अरि का काल,
महा विकराल ,
होता प्रलयकारी । (१)

क्यूँ
वीर
सिपाही !
देते प्राण ,
बदलो नीति-
अब कर्णाधारों ,
युद्ध धर्म स्वीकारो । (२)
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

बुधवार, 21 अक्टूबर 2015

विजय दशमी

 **आप सभी को विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाये**
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अम्बर-तल में हर्षित पल-पल ,पर्व विजय दशमी का पावन
दुर्गे अम्बे पाप नाशिनी ,,,,,,,,,, करती निर्भय ये जग कानन
मर्यादामय अन्तर वासित ,,,,,,,,कीनी धरा निर्भय सुवासित
वानर सँग कूदे  लंका बिच ,,,,,,,,,,, संहारे  दुष्ट दानव रावण

 *******सुरेशपाल वर्मा 'जसाला' (दिल्ली ) 




सोमवार, 19 अक्टूबर 2015

सम्मानित मित्रों !! सोचिये

सम्मानित मित्रों !! सोचिये ----
****दादरी (उप्र ) और कर्नाटका की घटना पर, सोची समझी साजिश के तहत साहित्यकार सम्मान लौटाते हैं ,,,
*****आतंकियों की बेरहम घटना पर चुप्पी साध लेते हैं ,,
*****1984 के दंगों के बाद कहाँ थे ये मान्यवर ,, *****मुंबई हत्या कांड के समय कहाँ गायब थे ये लोग ,,,,
*****बाटला हाउस कांड (दिल्ली) के समय क्यों आखे बंद थी ,,,,
*****उप्र सरकार जब दंगा पीड़ितों के साथ भी जाति का खेल खेल रही थी ,एक जाति विशेष को ही मुआवजा दे रही थी तो तब क्यों मानवता दिखाई नहीं दी इन्हें ,,,
*****कोई चुपचाप मांसाहारी पार्टी दे तो कोई फर्क नहीं पड़ता ,लेकिन जब कोई सिरफिरा ऐलान के साथ ऐसी पार्टी देता है तो उसका उद्देश्य शांति भंग करना ही हो सकता ,तब क्यों नहीं बोलते ये लोग ,,,
*****इससे इनकी नियत में खोट नजर आता है ,यही सोचने का प्रश्न है साथियों।


_____यही काम साहित्यकार कर रहे हैं और यही
काम मानवाधिकार कर रहा है,,जातीयता से बाहर निकल कर सबके साथ समान व्यवहार होना चाहिए ,,तभी सबका भला होगा ,,,जयहिंद
*******सुरेशपाल वर्मा 'जसाला' (दिल्ली )

मंगलवार, 29 सितंबर 2015

*****क्रान्तिकारी सरदार भगत सिंह*****
  ( सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक )
देश-धर्म पर मर मिटे ,,,,,,,, ,भारत माँ के लाल ।
लाल-लाल नैना हुए ,,,,, विद्युत पुँज सी ज्वाल । ।
ज्वाल गगन को छू गयी , वो भगत सिंह हुँकार ।
हुँकार दलिया दल गई ,,,,,,,,,,बिगड़ी गौरी चाल । । 

*******सुरेशपाल वर्मा 'जसाला' (दिल्ली )