गुरुवार, 25 जून 2015

***गीतिका *** मृगछौनों की मुस्कानों में


***गीतिका ***
मृगछौनों की मुस्कानों में , ''''''''''''''आनंद नहीं जिसने पाया ।
अनुगामी वो पशुता का है , '''''''''उसकी मिथ्या मानुष काया ।।

इठलाते मन भावों को जब , '''''''''''''''कर देते हैं अनदेखा हम ।
समझो हमनें कलशामृत को ,'''''''''''''''' है अंजाने में ठुकराया ।।

दन्तों की चमचम तडित-जडित , ढलती है जब मुस्कानों में ।
तब स्वर्ग अवतरित धरती पर ,''''' मन देवों का भी भरमाया ।।

कर पाया भान  न दृढ़ता का , '''पाहन का अवलोकन कर भी ।
है उसका ज्ञान अधूरा ही , ''''''''''''''उसने मन यों ही भटकाया ।।

देख जगत के प्रेमिल रँग को,'''''''''''''''' बैठ रहा जो आँखे मूंदे ।
अन्तर्मन शून्य बना उसका ,''''''''उसने जीवन व्यर्थ गँवाया ।।

चोटी पर बैठ कहे कागा , ''''''''''''''''''''''''जीता है मैंने चोटी को ।
 कहत 'जसाला' यह अर्द्ध सत्य, ''पूरा सच समझ नहीं आया ।।

*****************सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]

सोमवार, 22 जून 2015

गाँव : कहाँ गए वो गाँव

कहाँ गए वो गाँव -
पीपल पर झूले ,बरगद की छाँव
कबूतर की घुटुरघूं , मेंढक की टाँव 
चिड़िया की चहक ,कौए की कांव
न जाने  कहाँ गए वो गाँव ?

मुर्गे की बांग, सरसों का साग
सर्दी की ठिठुरन ,लकड़ी की आग
मस्ती का मल्हार, होली का फ़ाग
बैठक का हुक्का ,और आल्हा का राग
न जाने  कहाँ गए वो गाँव ?

गाँव की गौरी ,छमछम और घूँघट
दुल्हिन नवेली ,गगरी और पनघट  
शादी के गीत, मीठे और चटपट
 बालाओं की बात ,सुरीली और नटखट
 न जाने  कहाँ गए वो गाँव ?

गाय के बछड़े ,बैलों की कंठी
कट-कट रहट ,किसानों के शंटी
आम की खुशबू ,बेरों की कंटी
पंडित की पूजा ,मंदिर की घंटी
न जाने  कहाँ गए वो गाँव ?

कोयल की कूक ,मुर्गी का अंडा
कबड्डी का खेल , गुल्ली का डंडा
छाछ की मटकी ,खांड का ठंडा
घरोंदे का रेत , बचपन का फंडा
न जाने  कहाँ गए वो गाँव ?
***** सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

शनिवार, 20 जून 2015

गीतिका / हिंदी ग़ज़ल (मोहिनी बाजे अधर पर बांसुरी )

विधा =गीतिका  / हिंदी ग़ज़ल 
समान्त =अर  / पदांत =बाँसुरी
मापनी =2122 ,2122, 212

मोहिनी बाजे अधर पर बांसुरी।
कौन है जो ना धरे कर बांसुरी।।
मीत ज्यों ही साँस पूरी कर चला ।
गीत विरही गा उठी जर बांसुरी ।।
खून से जब सड़क रक्तिम सी लगे ।
फड़ फडाकर फड़कती हर बांसुरी ।।
देख आतँक हाल,हिय क्रन्दित बहुत ।
रो उठी चीत्कार सुनकर बांसुरी ।।
भू-गगन को गह रही हैं बेटियां ।
ताल देके खुश हुई नर बांसुरी ।।
बिलबिलाता देख शिशु को रो दिया ।
कह उठाकर हस्त श्रम कर बांसुरी ।।
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

*****बांसुरी =बंशी / हृदय (प्रतीकात्मक ) ,,जर=वृद्ध ,, हर =प्रत्येक ,,
गह=गहराई तक पता लगाना / खोजना,, नर बांसुरी =पुरुष हृदय

गीतिका / हिंदी ग़ज़ल : (मानवता की खातिर जो)



विधा=गीतिका / हिंदी ग़ज़ल
मात्राभार =14 + 12 ( 2222222 + 222222 )
समान्त =उक  ,,  पदांत=पाया

मानवता की खातिर जो , तनिक नहीं झुक पाया
प्यार खजाने से उसका , अंतस्थल खुक पाया

रंकाई का मालिक वो , काम सभी के आये
टुकड़ा मुँह का भी देता ,  हाथ नहीं रुक पाया

जीवन तोता मैना  सा ,चर्चा अधर-अधर पर
जब सँग मैना  का छूटा ,क्रंदित वो शुक पाया

झंझावातों से लड़ता , करता श्रम स्वेदनमय
दिनकर  की ज्वाला में भी ,मन वचन न फुक पाया

भंडार बहु  भरे धन के , बैठा लालच मन में
अंत तक नहीं समझ सका, धन का भिक्षुक पाया

बिजुरी कड़की कुछ ऐसी ,लड़ जीवन की बिखरी
देख जसाला अँधियारा ,जन- मन धुक-धुक पाया

*****सुरेशपाल वर्मा जसाला [दिल्ली]




बुधवार, 10 जून 2015

*****राजखेल *****

*****राजखेल *****
राजखेल में महाधुरन्धर
मानवता का पद्दलन करते
रक्त पिपासु काक श्रृगाल
बोटी नोंच भक्षण करते

धूर्त शकुनी  चलकर चालें
धर्मराज का अपहरण करते
स्याह-भ्रष्ट कर्मों के संगी
देश धन को हड़प करते

वस्त्र विहीन कर अस्मिता को
नग्नता का परचम फरते
आतंक के संग मेल मिला
नर-पिशाच हैं वे बनते

राजनीति के भ्रष्ट- धुरंधर
देश-धर्म गिरवी रखते
भारत माँ की सौगातों का  
वोटों बीच दलन करते
**** सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)



एक अनूठा उपन्यास ''खट्टे मीठे रिश्ते''

***एक अनूठा उपन्यास ''खट्टे मीठे रिश्ते'' ***
मित्रों ! कनाडा से प्रकाशित होने वाला एक अनूठा
उपन्यास ''खट्टे मीठे रिश्ते'' ,जिसके लेखक 100 से
 भी अधिक हैं ,,,उनमें से मैं  भी एक हूँ ,,मैं भी अपने
 हिस्से का लेखन का काम पूर्ण कर चुका हूँ ,,मैं स्वयं
में उसका हिस्सा होने से बहुत प्रसन्न हूँ ,,,ये सब
आप मित्रों के स्नेह का प्रतिफल है.
इस सम्पूर्ण कार्य को अंजाम दे रहे हैं ,,जाने-माने
कनाडा वासी साहित्यकार आदरणीय प्रो सरन घई जी ,,,
इस  अनूठे  कार्य के लिए उनका हार्दिक अभिनंदन

*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)

सोमवार, 8 जून 2015

* गीत * (आ जा रे मधुकर तू आ जा )

***** गीत *****
आ जा रे  मधुकर तू आ जा
अपना गुन-गुन राग सुना जा  ;

युवती सी सरसों झूम रही
वो मोहक आभा पूर रही ;
अंगों  की कलियाँ उभर-उभर  
हैं पीत स्वर्ण सी घूर रही;
तितली को सँग ले के आ जा
आकर उसका दिल बहला जा  ;
आ जा रे  मधुकर ........... 

नन्हीं-नन्हीं कलियाँ  लुटिया
सब अधर-अधर तक पूर हुई ;
मन पवन उन्हें खूब नचाये
मस्ती से  सारी चूर हुई ;
छलक न जाये मधुरस उनका
प्रेमिल प्याला ले के आ जा ;
आ जा रे  मधुकर  ............
*****सुरेशपाल वर्मा जसाला (दिल्ली)